इश्क़, जैसे कड़कड़ाती सर्दी में
खिली-खिली धूप
और रजाई में कुटर-कुटर करती
मूंगफली
इश्क़, जैसे सुबह
आँगन में पसरा हरसिंगार
और खुली खिड़की से झाँकता
झूलता-इठलाता सूरजमुखी
इश्क़, जैसे तपती गर्मी में
अनायास बहती शीतल हवा
और बारिशों में घुलती
सौंधी मिट्टी की ख़ुश्बू
इश्क़, जैसे उबलती चाय से
महकते अदरक-तुलसी
या कि बर्फ़ मौसम में
धीमी-धीमी सुलगती सिगड़ी
इश्क़, पंछियों का कलरव
तितलियों का चटख़ रंग
हरित पत्तियों से लिपटा मोती
और नन्हे बच्चों का हुड़दंग
इश्क़, जैसे एक अदद ज़िंदग़ी में
क़बूल हुई कोई दुआ
इश्क़ मैं, इश्क़ तुम
इश्क़ से ही तो जग रोशन हुआ
- प्रीति 'अज्ञात'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, छोटी सी प्रेम कहानी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना
ReplyDeleteइश्क़, जैसे एक अदद ज़िंदग़ी में
क़बूल हुई कोई दुआ
बहुत सुंदर पंक्ति
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteHi thankss for posting this
ReplyDeleteHello mate, great blog
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