Wednesday, November 28, 2012

Kuchh Pehchaane Se Drishya......


कुछ पहचाने से दृश्य.... 

जब भी घर से बाहर निकलते हैं ,कुछ घटनाएँ रोज़ ही हुआ करती हैं. हम सभी लापरवाह से अपनी ही धुन में या काम पर पहुँचने की जल्दी में उन्हें दरकिनार कर दिया करते हैं या फिर देखते हुए भी कंधे उचकाकर, ज़्यादा हुआ तो अफ़सोस ज़ताकर आगे बढ़ जाते हैं. उन सपनों पर गौर ही नहीं किया कभी, जिनके पूरे होने की आशा तो शायद उन्हें देखने वालों को भी नहीं...पर फिर भी वो पलकों तले उन ख्वाबों को संजोए हुए हैं. हम उन्हें हौसला क्या देंगे; जीने का ज़ज़्बा तो उन आँखों में है,जिनमें उम्मीद की पतंगें अब भी उड़ा करती हैं. और एक तरफ़ हम जैसे लोग हैं जो ज़रा-ज़रा सी बातों पर दिल को दुखा लिया करते हैं. लेकिन जब किसी के लिए कुछ करने का वक़्त आया, तो निगाहें फेर लेते हैं. ज़्यादा नहीं बोलूँगी, कुछ पंक्तियाँ आप सभी के लिए......... 
गली में या गलियारों में 
मंदिर की सीढ़ियों तले 
रोज ही हर चौराहे पर 
या किसी पार्किंग में मिले 
कभी ट्रेन के डिब्बों में 
तो कभी फ़ुटपाथ पर 
सिनेंमाघरों के बाहर 
या होटलों की चौखट पर 
कभी सिर पर बोझा ढोते 
कभी सड़क के गड्ढों में सोते 
रेत के टीलों में शंख है, तलाशती 
ईंटों के टुकड़ों को,बेफिक्री से उछालती
 अक़सर ये बिलखती है 
अक़सर ये तरसती है 
आसमान के छज्जे से लटके 
तारों को गिना करती है 
आम सी हो गई है 
हर कदम पर पाई जाती है 
हमें देख,कितनी दफ़ा 
उम्‍मीद से मुस्कुराती है 
बरसों से हर राह में भटकती 
जीने का सपना संजोती 
हर आते-जाते को देख,अब भी 
दौड़ती आती है...वो नन्ही सी 'ज़िंदगी' !! 
प्रीति'अज्ञात' 

Thursday, November 8, 2012

Machchhar Ki Shobhayatra


मच्छर की शोभायात्रा.... 







कुछ ही दिनों पहले की बात है, हमारी एक मित्र ने 'पहले तो करता है...' पढ़ने के बाद हमसे कहा कि "यार, मच्छर पर लिख कभी! बड़ा परेशान करते हैं!" ये उन मित्रों में से हैं,जो ना सिर्फ़ हमारा लिखा पढ़ते हैं,बल्कि उस पर अपनी प्रतिक्रिया भी ज़रूर व्यक़्त करते हैं. तो, जाहिर सी बात है.....कि उनकी बात के हमारे लिए काफ़ी मायने हैं. सो, हम भी कह गये शान में....."हाँ-हाँ, क्यूँ नहीं; दो दिन में लिखती हूँ". मुझमें और सलमान में यही तो समानता है..."कि एक बार जो अपुन ने कमिटमेंट कर दी, तो अपने आप की भी नहीं सुनते". फिर क्या था,ख़ुदा गवाह है;हम दो रातों से सो भी ना सके!! जिस बंदे को आज तक ना ग़ौर से देखा और ना ही मारने तक की हिम्मत जुटा पाए(आपने ठीक ही समझा,हम थोड़े डरपोक टाइप हैं),उस पर क्या लिखूं और कैसे?? कम्बख़्त पे प्यार भी तो नहीं आता!!इसी सोच में वज़न भी घटना शुरू हो गया था, कि अचानक समाचार सुनकर हमारी आँखें चमक उठी, दिमाग़ में जल तरंग वादन शुरू हो गया( ये सिर्फ़ दूरदर्शन पर ही आता है, हे भगवान! इस नई जेनरेशन का क्या करें?) देखो तो, वैसे भगवान ने हमारी हर एक फ़रियाद को बेफ़िज़ूल समझकर खारिज़ किया है; पर ये वाली कैसे झट से समझ गये और मान भी ली!!  

जी, हां ! समाचार हमारे राष्ट्रीय अतिथि श्रीमान कसाब(कसाई) जी की मच्छर द्वारा कटाई का ही था. दिल से कह रहे हैं..."पहली बार हमें मच्छर जाति पर फ़ख़्र हुआ"! पहली बार सही टारगेट जो चुना है. सरकार तो अभी तक मूड ही बना रही है, और 'भोलू' ने कर दिखाया! हां,जी हम अब उसे प्यार से 'भोलू जी' कहने लगे हैं! 
लोग इस बेचारी जाति को ग़लत तरीके से इस्तेमाल करते हैं. 'अबे,मच्छर..तेरी ये औक़ात' और भी ना जाने क्या-क्या कहकर बदनाम किए जाते हैं. 

पर आपको क्या ख़बर! यहाँ तक पहुँचने के लिए भोलू को किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा. और नहीं तो क्या, जिसने इतने लोगों का खून पिया हो,उसका खून पीना कोई आसान काम थोड़े ही ना है! बेचारा भोलू तब से उल्टियाँ करे जा रहा है, खाना-पीना सब हराम हो गया; बेचारे का!
दो महीने से ट्रेनिंग ले रहा था. कितनी रैलियों में जाकर 'सेम ग्रुप' का खून पिया. अपनी कई प्रजातियाँ तैयार की.'जस्ट इन केस,टारगेट मिस हो जाए तो'! भई,प्लानिंग तो करनी पड़ती है ना!! "कोई ओलिंपिक थोड़े ही ना है, कि जाओ जी, फॉरिन घूम आओ".......!! 
सुना है'मच्छर-समाज' में भोलू जी की वीरता के बड़े चर्चे हैं. कल उन्हें परमवीर-चक्र से सम्मानित किया जाएगा. पड़ोसी देश से 'मादा एनोफेलेज़' भी शिरक़त कर रही हैं. बाकी बॅक्टीरिया, वाइरस, फंगस को भी आमंत्रित किया गया है. बड़ी शान से शोभायात्रा भी निकलने वाली है. 
वो सब तो ठीक है, पर इस सबके चलते 'भोलू जी' में कहीं 'ईगो' ना जाए!! सर जी, अभी तो बहुत लोग बाकी हैं, ध्यान रखिए अपना ! मैं तब तक बाकी लोगों की लिस्ट बनाती हूँ........! 
*अमित जी ने ठीक ही कहा था, "कोई भी इंसान छोटा नहीं होता"! हम तो इस बात पर वैसे भी यकीन करते हैं..और आप???? 

प्रीति 'अज्ञात'