भीड़ अब व्यथित नहीं
लज्जित भी नहीं
रोज ही औंधे मुँह
निर्वस्त्र पड़ी स्वतंत्रता भी
नहीं खींच पाती ध्यान
नहीं आता अब कलेजा मुँह को
उतारी जाती हैं, तस्वीरें
'प्रथम' होने की होड़ में
ब्रेकिंग न्यूज़ में बार-बार
दिखेगा हर कोण !
दुखद घटना जो हुई है
सो, आएँगी संवेदना भी
हर दल की, एक दूसरे पर
दोष मढ़ने की उत्सुकता लिए.
इधर लुटती रहेगी अस्मिता
चादर के अंतहीन इंतज़ार में
उधर बिछेगी दरिंदगी सड़कों पर.
सभ्यता और संस्कारों के
कई पुख़्ता सबूत मिलेंगे
उन जिस्मों से बहते लहू में !
होगी जाँच, आक्रोशित चर्चा
क़ानून के खिलाफ
कुछ गुमनाम आवाज़ें उठेंगीं
निकलेगी रैली, होगा मौन,
शायद जलें मोमबत्तियाँ भी.
सारे तमाशों के बाद
वही खून से सना अख़बार
बिछेगा अलमारी में.
सुनाई देते रहेंगें
अब और भी ऐसे
'आम' समाचार
'आम' जनता के
'आम' जनता के लिए,
बदबू मारती, वस्त्र-विहीन
बेहद घिनौनी मिलेगी,
एक और लहूलुहान लाश
हर रोज ही
अपने इस विकृत प्रजातंत्र की
अपने ही बने किसी चौराहे पर !
-प्रीति 'अज्ञात'
*.पर तुम विचलित न होना, ये तुम्हारा 'अपना' जो नहीं ! 'भीड़' का कोई नहीं होता, अपना चेहरा भी नहीं....यही 'ख़ास पहचान' है, इसकी ! 'आम' इंसान होना, क्या 'खास' ??
लज्जित भी नहीं
रोज ही औंधे मुँह
निर्वस्त्र पड़ी स्वतंत्रता भी
नहीं खींच पाती ध्यान
नहीं आता अब कलेजा मुँह को
उतारी जाती हैं, तस्वीरें
'प्रथम' होने की होड़ में
ब्रेकिंग न्यूज़ में बार-बार
दिखेगा हर कोण !
दुखद घटना जो हुई है
सो, आएँगी संवेदना भी
हर दल की, एक दूसरे पर
दोष मढ़ने की उत्सुकता लिए.
इधर लुटती रहेगी अस्मिता
चादर के अंतहीन इंतज़ार में
उधर बिछेगी दरिंदगी सड़कों पर.
सभ्यता और संस्कारों के
कई पुख़्ता सबूत मिलेंगे
उन जिस्मों से बहते लहू में !
होगी जाँच, आक्रोशित चर्चा
क़ानून के खिलाफ
कुछ गुमनाम आवाज़ें उठेंगीं
निकलेगी रैली, होगा मौन,
शायद जलें मोमबत्तियाँ भी.
सारे तमाशों के बाद
वही खून से सना अख़बार
बिछेगा अलमारी में.
सुनाई देते रहेंगें
अब और भी ऐसे
'आम' समाचार
'आम' जनता के
'आम' जनता के लिए,
बदबू मारती, वस्त्र-विहीन
बेहद घिनौनी मिलेगी,
एक और लहूलुहान लाश
हर रोज ही
अपने इस विकृत प्रजातंत्र की
अपने ही बने किसी चौराहे पर !
-प्रीति 'अज्ञात'
*.पर तुम विचलित न होना, ये तुम्हारा 'अपना' जो नहीं ! 'भीड़' का कोई नहीं होता, अपना चेहरा भी नहीं....यही 'ख़ास पहचान' है, इसकी ! 'आम' इंसान होना, क्या 'खास' ??
सुंदर लेखन , प्रीती जी धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ४५ साल का हुआ वो 'छोटा' सा 'बड़ा' कदम - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteप्रीती जी बहुत ही कडवा सच कहा आपने। अपाहिज होते समाज को आपने बेहतरीन आइना दिखाया है
ReplyDeleteएक एक शब्द सच कह रहा है
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति
सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteSashakt Aur Vicharniy.....
ReplyDeleteसंवेदनशील .. मन को व्यथित करती हैं आपकी पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteहम भी तो हिस्सा मात्र ही हैं इस भीड़ के ...
बिल्कुल खरी खरी बात कह दी………सुन्दर भाव संयोजन्।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteकटु सत्य, बेहद सटीक और मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteकडवा और भयंकर सच। शर्म आती है अपने आप पर कि कुछ भी क्यूं नही कर पाते हम।
ReplyDeleteओह! मर्मस्पर्शी ..
ReplyDeleteJaroori mudda uthaya hai aapne, prabahvshali prastutikaran hai.
ReplyDeleteपोस्ट पर आने और प्रतिक्रिया देने के लिए आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया !
ReplyDeleteतीखे शब्द हैं आपके , लेकिन इससे भी ज्यादा दर्द और पीड़ा ऐसे समाज में रहने वाले और झेलने वालों को सहना पड़ता है !
ReplyDeleteजी, बस वही दर्द लिखने की कोशिश की है ! पोस्ट पर प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद !
DeleteBahut marmsparshi bhivyakti ..ek peedadeh saty...
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आपका !
Delete