Thursday, January 4, 2018

जी, साब जी

जैसे ही नेता जी चीखे 
अफसर बोले आया जी 
युग बीते हैं इन चरणों में
पर गले नहीं लगाया जी 

तुम जात-पांत के खेला में 
हाय हमको दद्दा भूल गए 
जान निछावर करके हारे 
कुछ भी न हमने पाया जी 

हम मां-बाबा के इकलौते थे 
और जी-जान से पढ़ते थे 
तुम लड़ते संसद में जैसे 
वैसे घर पर भी न करते थे 

अरे, राजा हो या प्यादा हो
पर भाषा की मर्यादा हो
मत भूलो सम्मान किसी का
शिक्षा ने सिखलाया जी

पर राजनीति की कीचड़ ऐसी 
अच्छा-बुरा बराबर है
जिसका, जितना खेल भयंकर 
वही हुआ कद्दावर है 

देशप्रेम की ख़ातिर हमने 
किस्सा ये समझाया जी 
पीर हिया की बाहर निकली 
मन को हल्का पाया जी  
 - © प्रीति 'अज्ञात'

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