जैसे ही नेता जी चीखे
अफसर बोले आया जी
युग बीते हैं इन चरणों में
पर गले नहीं लगाया जी
तुम जात-पांत के खेला में
हाय हमको दद्दा भूल गए
जान निछावर करके हारे
कुछ भी न हमने पाया जी
हम मां-बाबा के इकलौते थे
और जी-जान से पढ़ते थे
तुम लड़ते संसद में जैसे
वैसे घर पर भी न करते थे
अरे, राजा हो या प्यादा हो
पर भाषा की मर्यादा हो
मत भूलो सम्मान किसी का
शिक्षा ने सिखलाया जी
पर राजनीति की कीचड़ ऐसी
अच्छा-बुरा बराबर है
जिसका, जितना खेल भयंकर
वही हुआ कद्दावर है
देशप्रेम की ख़ातिर हमने
किस्सा ये समझाया जी
पीर हिया की बाहर निकली
मन को हल्का पाया जी
- © प्रीति 'अज्ञात'
अफसर बोले आया जी
युग बीते हैं इन चरणों में
पर गले नहीं लगाया जी
तुम जात-पांत के खेला में
हाय हमको दद्दा भूल गए
जान निछावर करके हारे
कुछ भी न हमने पाया जी
हम मां-बाबा के इकलौते थे
और जी-जान से पढ़ते थे
तुम लड़ते संसद में जैसे
वैसे घर पर भी न करते थे
अरे, राजा हो या प्यादा हो
पर भाषा की मर्यादा हो
मत भूलो सम्मान किसी का
शिक्षा ने सिखलाया जी
पर राजनीति की कीचड़ ऐसी
अच्छा-बुरा बराबर है
जिसका, जितना खेल भयंकर
वही हुआ कद्दावर है
देशप्रेम की ख़ातिर हमने
किस्सा ये समझाया जी
पीर हिया की बाहर निकली
मन को हल्का पाया जी
- © प्रीति 'अज्ञात'
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