Monday, June 6, 2016

स्त्री

बचपन उनमें लूट रही हूँ
अपने सपने कूट रही हूँ 

कभी छुपी थी 
डर बैठी इक कोने में
कभी लिपट रोई संग
माँ के बिछौने में
गया समय ले साथ 
बीती बात सभी 
अब खुद से ही रूठ रही हूँ
अपने सपने.........
 
रिश्तों को अपनाया
जिया भरम ही था
आया हिस्से जो 
पिछला बुरा करम ही था 
है किससे क्या कहना
और किसकी ख़ातिर लड़ना
थोड़ा-थोड़ा टूट रही हूँ
अपने सपने......

वो जीवन भी क्या 
जो किश्तों में पाया
न समझी ये दुनिया 
है इसकी क्या माया
थी कोशिश पल भर
हंसकर जी लेने की 
भीतर ही खुद छूट रही हूँ
अपने सपने.......
- प्रीति 'अज्ञात'

Sunday, June 5, 2016

सेलिब्रिटी

वे समझते हैं
खुद को सेलिब्रिटी 
बड़े हो गए 
तो आप जरा अदब से मिलें 
करें दुआ- सलाम रोजाना 
देखें उनकी ओर 
कृपादृष्टि बरसने की उम्मीद लिए 

एक पल को तो लगेंगे ये
बेहद अहंकारी, कुंठित 
पर लेना जायजा कभी  
इनके आसपास की भीड़ का
पाओगे कुछ को
रोज मजमा लगाने वाले
मदारी की तरह 
और कुछ की हालत से 
पसीजेगा ह्रदय  
जब देखोगे इन्हें 
किसी और के आगे-पीछे 
हाथ बाँधे खड़े हुए 
 
बोरिंग पासिंग गेम की तरह
बड़े-छोटे समझने का यह भ्रम 
सृष्टि में सदियों से है जारी 
आगे भी रहेगा
भटकती सभ्यता और
आखिरी मानव की 
आखिरी साँसों के
बीत जाने तक

अब ये तुम पर है
कि ज़िंदगी की शतरंज में
स्वयं को कहाँ खड़ा 
करना चाहोगे 
बस डूबते सूरज को
ध्यान में रखना!
- प्रीति 'अज्ञात'