Friday, February 21, 2020

मोए का पतो....

पेड़ गिरा कें बिल्डिंग बन गईं
खाट झुपड़ियाँ संग उखड़ गईं
सांस घुटे ल्यो घामऊ  बढ़ गई
जे का भओ?

मोए का पतो... 

दो थे कमरा आठ जना जब
संग रहत थे खात-मिलत तब
चील बिलैया लड़त फिरें अब 
जे का है गओ?
मोए का पतो....

मौड़िन के सब पैर छुअत थे
नाम पे बिनके खूब भिड़त थे
लछमी घर की प्रेम करत थे
ओ मैया! अब का भओ?
मोए का पतो.....

चैये पैसा, पर काम न कत्त
पढ़ें न लिक्खें, हाथ में लट्ठ
देस का नाम तो है गओ सट्ट
जे का है गओ?
मोए का पतो.....

देस इकट्ठो पैले भओ थो
अंग्रेजन नों कूट दओ थो
बाके बाद धरम उग गओ थो
जे काय उग गओ?
मोए का पतो....

जितऊँ चिताओ आग बरत है
जात -पात  की हवा चलत है
जान की नेकऊ ना कीमत है
जे का कद्दओ?
मोए का पतो.... 

सिगरे एक दिना रोवेंगे 
का खावेंगे का पीवेंगे 
छाती पीट पछाड़ें लेंगें 
ओ दैया, फिर का होएगो? 
मोए का पतो.... 
मोए का पतो....😞
- कॉपीराइट © प्रीति 'अज्ञात'

Saturday, February 8, 2020

कवि

कवि पढ़ लेता है
वह सब भी
जो लिखा ही न गया कभी
कवि सुन लेता है
वह सब भी
जो कहा ही न गया कभी
जी लेता है तमाम अनकहे,
अलिखित,अपठित गद्यांशों में ही
सारी उम्र अपनी 
और एक दिन उन ख़्वाबों को  
कविता की तस्वीर दे 
कर देता है मुक़म्मल 
-प्रीति 'अज्ञात' 

कभी-कभी

कभी-कभी शब्द भी
छोड़ देते हैं
कवि का साथ
आते हुए प्रश्न
और उसके बाद की
गहरी चुप्पी संग
दबी अचकचाहट में
छुपा होता है उत्तर
क्या तुमने पढ़ी है कभी
मौन की परिभाषा?
-प्रीति 'अज्ञात'