Tuesday, July 24, 2018

हे राम!

राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट 
जो बंदा मन की करे उसे पकड़कर कूट 
उसे पकड़कर कूट तू ऐसा मानवता शरमाये 
थर-थर बोलें लोग यही हाय नंबर न लग जाये

तुम स्वामी, तुम अन्तर्यामी ये तुमरा ही देस 
बाक़ी चोर, उचक्के ठहरे बदल-बदल कर भेस 
तुमको तुम्हीं मुबारक़, हाँ दिखलाओ अपनी शक्ति 
राम प्रकट होंगे जिस दिन बतलाना अपनी भक्ति

कहना उनके नाम पर क्या क्या न किया है तुमने 
अपनी ही माटी को छलकर रौंद दिया है तुमने
फिर रोना छाती पीट-पीट, दुःख दुनिया के तर जाएँगे
पर तुमरी गाथा तुमसे सुन वो जीते जी मर जाएँगे
- प्रीति 'अज्ञात'
#राम_का_नाम_बदनाम_न_करो  

रामराज्य

आसाराम करें आराम, जय श्री राम, जय श्री राम
राम-रहीम बिगाड़ें काम, जय श्री राम, जय श्री राम 
राधे माँ छलकते जाम, जय श्री राम, जय श्री राम
जेल भई अब चारों धाम, जय श्री राम, जय श्री राम 

मारा-कूटी, गिरे धड़ाम, जय श्री राम, जय श्री राम
बाढ़ में डूबे हाय राम, जय श्री राम, जय श्री राम
मुग़ल विदा सब बदले नाम, जय श्री राम, जय श्री राम
मंदिर-मस्ज़िद भये बदनाम, जय श्री राम, जय श्री राम
-प्रीति 'अज्ञात'
#रामराज्य #सहिष्णु_भारत 

Saturday, July 21, 2018

सब बढ़िया है

तुम्हारी हँसी 
जीवन की उस तस्वीर जैसी है 
जिसमें उम्र के तमाम अनुभव 
होठों पर जमकर खिलखिलाते हैं 
और फिर हँसते-हँसते अनायास ही 
मौन हो सूनी आँखों से 
एकटक देखते जाना 
दर्द की सारी परतों को 
जैसे जड़ से उधेड़कर रख देता है 
समय के साथ हम कितना कुछ सीख जाते हैं न!
मर-मर कर जीना 
या कि जीते जी मर जाना
स्वप्न को जीवित ही गाड़ 
इन आँखों का पत्थर हो जाना
और हँसते हुए दुनिया से हर रोज कहना 
सब बढ़िया है
- प्रीति 'अज्ञात'

Wednesday, July 4, 2018

प्रतीक्षा

मृत्यु एक शाश्वत सत्य है
जो घटित होते ही रोप देता है 
दुःख के तमाम बीज  
स्मृतियों की अनवरत आवाजाही के मध्यांतर में 
पनपती हैं चहकती सैकड़ों तस्वीरें
और किसी चलचित्र की तरह 
जीना होता है उन्हें मौन, स्थिर बैठकर

बादलों के उस पार से 
सुनाई देती है अब भी 
नन्हे क़दमों की आहट
तीर से चले आने की 
होती है सुखद अनुभूति किसी के
धप्प से लिपट जाने की 
आती है ध्वनि कि जैसे उसने 
पुकारा हो बिल्कुल अभी 
और ठीक तभी ही 
फैला हुआ सन्नाटा
सारे भ्रम को चकनाचूर कर  
किसी अनवरत नदी-सा 
प्रवाहित होने लगता है कोरों से

है कैसी विडम्बना
कितना क्रूर है ये नियम 
कि भीषण वेदना, अथाह दुःख के सागर में 
सारी संभावनाओं के समाप्त हो जाने पर भी 
रुकती नहीं समय की गति  
चलायमान रहता है जीवन 
ठीक वैसे ही 
जैसे कि हुआ करता था
किसी की उपस्थिति में

पर न जाने क्यूँ फिर भी 
उम्मीद की खिड़की पर 
बरबस टंग जाती हैं आँखें 
और प्रतीक्षा के द्वार 
अंत तक खुले रहते हैं....
 - प्रीति 'अज्ञात'