Monday, February 15, 2016

फरवरी - दो कविताएँ

1. 
बहुत खूबसूरत होते हैं ये सात दिन 
जिनका होना-न- होना यक़ीनन 
प्रेम की पुष्टि नहीं करता 
फिर भी अच्छा लगता है 
मिलना अपनों से प्रेम से
गुलाब की खुश्बुओं के बीच
उम्र-भर का वादा लिए 
बैठा युगल, टेडी को साथ वाली 
कुर्सी पर बिठाये 
थामे हाथों में हाथ
चॉकलेट के मीठे स्वाद के साथ 
दोनों झांकते आँखों की खिड़कियों से
उठते गले मिलते हुए
एक प्यारा-सा बोसा
एक इज़हार
एक वादा
वादे को निभाने का   
लो हो गया 
renewal प्यार का! :)
- प्रीति 'अज्ञात'
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2. 
वो जिन्होंने पाया ही नहीं 
इसे अपने लिए 
या ज़िन्दगी की तरह 
टुकड़ा-टुकड़ा भरी
किश्तें इसकी
दर्द के अतिरिक्त  
अधिभार के साथ 
वो इन दिनों मौन हो 
दरवाजे की कुण्डी चढ़ा 
सर को टिकाये 
भीतर ही बैठे रहे
पर था उन्हें भी 
किसी दस्तक़ का इंतज़ार!

जैसे खींच ली हो जुबां
हालात ने 
या कि वक़्त ने
दबोचते हुए 
कसकर बाँधा है गला 
कि शब्द रुंधे, नाराज-से,
छटपटाकर अंदर ही 
दम तोड़ देते हैं  
न जाने क्यूँ
कुछ दिलों पर 
बेहद भारी होते हैं
ये सात दिन   
और बोझ-सी
ठहर जाती है 
'फरवरी' :(
- प्रीति 'अज्ञात'