Sunday, November 17, 2019

राजा और प्रजा

लाशों के ढेर पर खड़े होकर 
राजा बजा रहा है शान्ति का बिगुल
भीड़ के शोरगुल में 
दबा दी गई है सच की आवाज 
छिपाये जा चुके हैं ख़ून से सने दस्ताने 
राजा जानता है कैसे मूर्ख बनती है प्रजा 
और कैसे बरग़लाया जा सकता है 
जन्मों से भूखी क़ौम को 
तभी तो डालकर रोटी के दो टुकड़े 
वो लगा देता है लेबल छप्पन भोग का 
धँसे पेट और चिपकी अंतड़ियाँ लिए लोग
टूट पड़ते हैं जीवन के लिए 
शुष्क गले और कृतज्ञ आँखों से 
लगाते हैं जयकारा 
'राजा महान है'
राजा सचमुच महान है 
तभी तो अशिक्षा और बेरोज़गारी के मस्तक पर 
धर्म का तिलक लगा 
बजवा रहा है अपने नाम का
चहुँदिश डंका 
राजा को बस यही सुनाई देता है 
राजा को बस यही दिखाई देता है 
बस यही राजा के मन की बात है 
कि उसने पकड़ ली है जनता की नब्ज़ 
और पाल रखे हैं चुनिंदा,अनपढ़ इतिहासकार 
जो कान घुमाते ही भारतीयता को धता बता 
गढ़ने लगते हैं मनमाफ़िक़ किस्से   

पुराने नामों पर नए मनमोहक मुलम्मे चढ़ा
सिद्ध होता है देशभक्ति का नया फॉर्मूला 
फिर चुनते हुए अपने महापुरुष 
ठोकी जाती है अहंकार की पीठ 
हुआँ हुआँ की ध्वनि से गूँजता है वातावरण 
और यकायक खिल उठते हैं आत्ममुग्धता से लबालब 
सारे स्वार्थी, मनहूस चेहरे

राजा की बंद आँखों को 
नहीं दिखतीं स्त्रियों की लुटती अस्मिता 
उसे नहीं सुनाई देते 
मासूम बच्चों के चीखते स्वर 
वो नहीं बताता बलात्कारियों को बचाने का सबब 
वो नहीं दिखाता बाल मजदूरों को 
उसे न देश की गरीबी दिखती है, न दुःख 
कहा न! राजा महान है! 
इसलिए प्रजा को भी नतमस्तक हो स्वीकारनी होगी 
उसकी महानता 

शान्ति के बाशिंदों और
अहिंसा के स्वघोषित पुजारियों ने 
डिज़ाइनर वस्त्र के भीतर की जेबों में 
सँभाल रखे हैं कई धारदार चाक़ू 
जिनसे रेता जायेगा वो हर एक गला
जो असहमति में हिलता नज़र आएगा 
जो सच बोलेगा,वही सबसे पहले मारा जायेगा

यूँ राजा अद्भुत नाटककार है प्रेम का
अपनी ग़लतियों को मौन के धागे से सिल
वो मुदित हो उँगलियों पर गिनाता है
दुश्मनों की कमियाँ 
विद्वेष और बदले की आग से भरी जा रहीं जेलें 
और अपराधियों से उसकी वही पहले सी साँठगाँठ है 
इन दिनों वो रच रहा वीरों की नई परिभाषा 
बता रहा क़ायरों को क्रांतिकारी 
क्यूँ न कहे वो ऐसा 
क्यूँ न लगे उसे ऐसा 
वह स्वयं भी तो इन्हीं आदर्शों को
जीता रहा वर्षों से 
पर तुम कुछ न कहना 
दोनों हाथों से ताली पीटते हुए 
चीखना जोरों से कि राजा अच्छा है
क्योंकि राजा कोई भी हो 
प्रजा को रोटी के साथ-साथ 
अपनी जान भी तो प्यारी है 
- प्रीति 'अज्ञात'(9/11/19)