Not a Poem....Pure Emotions !
Dedicated to all the Fathers, Who are working so hard
A Salute to You All & Ofcourse
HAPPY FATHER'S DAY !
तुम कहते कुछ भी नहीं
पोंछ देते हो बस, कभी-कभार
माथे-से छलकते आँसू
और देखते हो अक़्सर
आसमाँ को
मानो पूछ रहे हो
उस ऊपरवाले से
मैनें किया क्या है, यार!
ह्म्म्म्म, वाजिब है तुम्हारा
उससे ये पूछना
आख़िर घर से निकलते समय
और भीतर क़दम रखते ही
शिकायतों की आड़ में दबी
सवालों की बौछार
हताश तो कर ही देती है न !
क्यूँ नहीं सोचता कोई
कि सुबह से रात तक वो
रोटी की जुगाड़ में है लगा
कर रहा पूरी तुम्हारी हर अपेक्षा
लेता है छुट्टियाँ
भले खानी पड़ें झिड़कियाँ
फिर असल छुट्टी का दिन भी
गुज़ार ही देता है
फ़रमाइशों की सूची तले पिसकर
भाग रहा दिन-रात
हर मौसम में
कि सलामत रहे
उसके अपनों के चेहरों पर
वही पहले-सी मुस्कान
सोचो, कैसा लगता होगा उसे
जब वही चेहरे पलटकर कह दें
आपने किया क्या है, हमारे लिए
ओह्ह्ह, दुखद! काश, सोचो
कभी यूँ भी....
अरे, तो फिर वो
अब तक आखिर,जीता रहा
किसके लिए?
वो तब भी चुप था
वो अब भी चुप है
माँ की महानता के आगे
उसकी क़ुर्बानियाँ छुपती गईं
निभाता रहा वो उन्हें तब भी
निभा रहा अब भी
वो मौन है
बस, उसके आँसू
माथे से ढुलक पड़ते हैं
पोंछ देता है उन्हें
अपनी ही शर्ट की
बाहों से
क्या करे आख़िर...
'पिता' जो है !
- प्रीति 'अज्ञात'
Dedicated to all the Fathers, Who are working so hard
A Salute to You All & Ofcourse
HAPPY FATHER'S DAY !
तुम कहते कुछ भी नहीं
पोंछ देते हो बस, कभी-कभार
माथे-से छलकते आँसू
और देखते हो अक़्सर
आसमाँ को
मानो पूछ रहे हो
उस ऊपरवाले से
मैनें किया क्या है, यार!
ह्म्म्म्म, वाजिब है तुम्हारा
उससे ये पूछना
आख़िर घर से निकलते समय
और भीतर क़दम रखते ही
शिकायतों की आड़ में दबी
सवालों की बौछार
हताश तो कर ही देती है न !
क्यूँ नहीं सोचता कोई
कि सुबह से रात तक वो
रोटी की जुगाड़ में है लगा
कर रहा पूरी तुम्हारी हर अपेक्षा
लेता है छुट्टियाँ
भले खानी पड़ें झिड़कियाँ
फिर असल छुट्टी का दिन भी
गुज़ार ही देता है
फ़रमाइशों की सूची तले पिसकर
भाग रहा दिन-रात
हर मौसम में
कि सलामत रहे
उसके अपनों के चेहरों पर
वही पहले-सी मुस्कान
सोचो, कैसा लगता होगा उसे
जब वही चेहरे पलटकर कह दें
आपने किया क्या है, हमारे लिए
ओह्ह्ह, दुखद! काश, सोचो
कभी यूँ भी....
अरे, तो फिर वो
अब तक आखिर,जीता रहा
किसके लिए?
वो तब भी चुप था
वो अब भी चुप है
माँ की महानता के आगे
उसकी क़ुर्बानियाँ छुपती गईं
निभाता रहा वो उन्हें तब भी
निभा रहा अब भी
वो मौन है
बस, उसके आँसू
माथे से ढुलक पड़ते हैं
पोंछ देता है उन्हें
अपनी ही शर्ट की
बाहों से
क्या करे आख़िर...
'पिता' जो है !
- प्रीति 'अज्ञात'
ब्लॉग बुलेटिन के पितृ दिवस विशेषांक, क्यों न रोज़ हो पितृ दिवस - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत ही भावमय रचना ... पिता संबल हैं जीवन का ...
ReplyDeleteआखिर पिता जो है ...बहुत भावपूर्ण
ReplyDeletedukhad to tab hota hai jab fal khane ke umar me bachhe kante chubhote hain
ReplyDelete