Sunday, June 21, 2015

पूरा फिल्मी ही है, न ?

समंदर किनारे बैठे
तुम और मैं
सुनेंगे धड़कनों के गीत
अपने मन की ताल पर

हेडफोन का एक-एक सिरा
कानों में ठूँसकर
देंगे विदा दुनिया की
बेहूदा आवाजों को

बाँध लेंगे हौले से
मुट्ठी भर सपना
हाथों को पीठ पीछे
चुपके से बाँधकर

गिनेंगे एडियों तक
छूकर लौटती हुई
अनगिनत इच्छाओं की
बेचैन लहरों को

दूर आसमाँ से टकराता
भावनाओं का ज्वार
देगा भरम मिलन का
इधर, चुप्पी ओढ़ लेगा ह्रदय

नाराज बच्चे-सी, समेटनी होंगी
बेबस मन की तसल्लियाँ
हक़ीक़त की क्रूर दुनिया में
बस यही मायूसी तो मुमकिन है

रेत पर लिखे दो नाम
मिलते हैं, एक-दूसरे से
फिर हो जाते हैं ओझिल
न जाने किन दिशाओं में

चीखती-चिल्लाती स्मृतियाँ
वक़्त के बहाव को
टुकुर-टुकुर देख
बदल लेती हैं, अपनी करवटें

ह्म्‍म्म...यही सच है
जीवन का
बाकी सब तो
पूरा फिल्मी ही
है, न ?
- प्रीति 'अज्ञात'


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