Tuesday, September 16, 2014

शोर..?

सन्नाटे को रौंदती हुई
कुछ आवाज़ें
अपने ही कानों में पलटकर
शोर करतीं हैं
लाख पुकारो
चीखो-चिल्लाओ
घिसटते रहो, संग उनके
मनाओ, अनसुना हो जाने
का भीषण दु:ख
जो पास है, वही
कचोटता रहेगा
स्मृतियों की जुगाली बनकर !

उसका निष्ठुर मन

न जान सकेगा
'जो कहना था..
...बाक़ी ही रहा'
चलो, अलविदा
अब मथता रहेगा मन
उस असीम संभाव्य को
जिसकी तलाश में
बीता समय, मलता चला गया
धूल अपने ही चेहरे पर !

न सुना है, न सुन सकेगा

उम्मीद जो, हर रोज खोई
न शिकायत, न इंतज़ार
बस, वही कसक है बाकी
खैर... आसमाँ के उस पार से
चाहकर भी वापिस
कहाँ लौट सका है कोई !
- प्रीति 'अज्ञात'

10 comments:

  1. बहुत हि सुंदर , जी धन्यवाद !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 18 . 9 . 2014 दिन गुरुवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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  2. बीत जाने के बाद अनेक कुछ रह जाता है ... अलविदा बंद कर देते है साए द्वार ...

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    1. 'अलविदा' से ज़्यादा तक़लीफ़देह, और कोई शब्द नहीं ! आभार, प्रतिक्रिया के लिए :)

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  3. Marmsparshi prastuti behad..... Badhaayi va shubhkaamnaayein..

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  4. सुन्दर प्रस्तुति !
    मेरे ब्लॉग की नवीनतम रचनाओ को पढ़े !
    आपके शुझाव आमंत्रित हैं कृपया मेरे ब्लॉग को फॉलो करें

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  5. कामयाब कोशिश....बेहतरीन रचना...अलग रंग...अलग रूप...वाह...

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    1. आभार, संजय भास्कर जी !

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