Sunday, September 14, 2014

मैं 'हिन्दी'

आज 'हिन्दी दिवस' पर, 'हिन्दी' खुद कैसा महसूस करती होगी, उसके अंतर्मन में झाँककर जानने की कोशिश की है -

मैं 'हिन्दी'
बस आज ही, चमक रही
'मृगनयनी-सी'
कभी बनी
'वैशाली की नगर वधू'
तो कभी
'चंद्रकान्ता'
हो 'मधुशाला'
बहकी भी
खूब लड़ी 'झाँसी की रानी'
'पारो' बन चहकी भी !

दिखी कभी राहों पर
'तोड़ती-पत्थर'
तो कभी
किसी 'पुष्प की अभिलाषा'
कहलाई
'नर हो न निराश करो मन को'
कह 'मैथिली' ने 
उम्मीद की अलख जलाई !

फिर क्यूँ बैठी हूँ
आज तिरस्कृत
'प्रेमचंद' की 'बूढ़ी काकी' बनकर
सिमटी हुई
अपने ही घर के
एक कोने में
कर रही इंतज़ार
कि कोई लेगा सुध
मेरी भी कभी
ठीक वैसे ही जैसे
'हामिद' आया था
'उस दिन'
'अमीना' का चिमटा लेकर !

पर 'हामिद' बन पाना
सबके बस की बात कहाँ
हर 'अहिल्या' को नहीं मिलता
अब कोई 'राम' यहाँ !
बात है 'आत्म-सम्मान' की
हाँ, अस्तित्व और स्वाभिमान की
खड़े होना होगा, स्वयं ही
सुना है....
'कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती'
'बच्चन' ने भी गुना है
'किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अंधेरी रात पर, दीवा जलाना कब मना है'

'हिन्दी' का 'दिया', अब हर घर में जलाना होगा, 'मातृ-भाषा' को उसका खोया सम्मान दिलाना होगा, एक वादा करना होगा, केवल आज ही नहीं....बल्कि हर दिन अपनी 'राष्ट्र-भाषा' को अपनाना होगा ! अन्य भाषाओं का भी मान रहेगा पर 'हिन्दी' किसी से कमतर है, इस सोच को सबके दिलों से निकालना ही होगा ! आख़िरकार...."हिन्दी हैं हम, वतन है...हिंदोस्ताँ हमारा"......सारे जहाँ से अच्छा !
- प्रीति 'अज्ञात'

21 comments:

  1. सुंदर और सामयिक...हिंदी हमारी पहचान है... हिंदी दिवस की बधाई !!

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  2. धन्यवाद, हिमकर जी ! आपको भी बधाई !

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  3. माफ़ी चाहता हूँ आपसे 2-4 सवाल करने है....
    आपको ऐसा क्यों लगता है हिंदी केवल आज (14सित.) ही चमकती है?
    आपको क्यों लगता है की हिंदी ने अपना सम्मान खो दिया है?
    बोलते हो हिंदी हैं हम और हिंदी को कमतर भी जता रहे हो... लानत है ऐसी सोच पर यार
    जो दिमाग से लिखते है वो दिल पर चोट देते है.....

    हमारे देश में 75 प्रतिशत लोग हिंदी लिखते, हिंदी बोलते और हिंदी समझते है
    अंग्रेजी और चीनी के बाद दुनिया में तिसरे स्थान पर कोई विराजमान हैं तो वो हिंदी है।


    "अगर मैं किसी भी प्रकार से चोट पहुंचाई है तो माफ़ी चाहता हूँ।"

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    1. आपने कुछ सवाल किए और माफी भी माँगी. तो सबसे पहले तो यह स्पष्ट कर दूं कि माफी माँगने की कोई बात ही नहीं, बल्कि मुझे खुशी है कि इससे पता चला...'मेरा लिखा अपने मर्म को समझा पाने में असफल रहा.' संभवत: आपके अलावा भी किसी और को यही ग़लतफहमी हुई हो...तो अब आपके साथ-साथ उनका भ्रम भी अवश्य ही दूर हो जाएगा ! अब आपके प्रश्नों के उत्तर, उसी क्रम में -
      १. मुझे ऐसा लगता नहीं कि 'हिन्दी केवल आज ही (१४ सितंबर) चमकती है'.... बल्कि मैं जानती हूँ, देख रही हूँ. सिर्फ़ यही नहीं बल्कि ये हाल हर दिवस का है..अब Post, 'Market' के हिसाब से बनती हैं. बात 'Demandऔर Supply' की है. मैं और आप भी इससे अछूते नहीं ! वरना आप ही बताइए, 'हिन्दी' पर ऐसी चर्चा और चिंतन, वर्ष के बाकी दिनों में क्यों नहीं दिखाई देता ? क्योंकि, बाकी दिन हमें फ़र्क़ ही नहीं पड़ता ! सबकी अपनी-अपनी उलझनें है, किस किसकी सोचेंगे ! बात कड़वी है, पर यही हमारा सच है !
      २. 'हिन्दी ने वाकई अपना सम्मान खो दिया है'....वरना हम लोग अपने बच्चों को 'अँग्रेज़ी माध्यम' स्कूलों में भेजने पर विवश न होते ! यदि 'हिन्दी' इतनी ही प्रतिष्ठित होती, तो हम 'हिन्दी माध्यम' में पढ़ाने में ज़रूर गर्व महसूस कर रहे होते ! हम सब जानते हैं कि बच्चों को वहाँ भेजने का मतलब, उनके सुनहरे भविष्य की संभावनाओं को सीमित कर देना है. अच्छे माता-पिता ऐसा क्यूँ करेंगे, यदि वो समर्थ हैं तो उन्हें शहर के सर्वश्रेष्ठ स्कूल में भेजकर ही वे अपने कर्तव्य का निर्वहन करेंगे ! जो कि हम सभी करते आ रहे हैं, 'हिन्दी पर भारी चिंता जताने के बावजूद भी!'
      ३.मैं बोलती हूँ..'हिन्दी हैं हम', क्योंकि यह राष्ट्रभाषा है जिसके लिए मेरे हृदय में अपार प्रेम और सम्मान है.
      'हिन्दी' को कमतर, मैं नहीं आंक रही..बल्कि इस देश में उसकी दुर्दशा पर व्यथित हो रही हूँ ! यदि ये 'लानत लायक सोच' सभी महसूस करते, तो हमारे ही देश के कई प्रदेशों में, प्रादेशिक भाषा के साथ / बाद, अँग्रेज़ी ने अपनी जड़ें नहीं फैलाई होतीं, वहाँ सारे कार्य 'हिन्दी' में ही होते ! लानत तो है, उन लोगों पर..जिनके पास इसे दुरुस्त करने के अधिकार भी हैं और हथियार भी....पर व्यवस्था को कोसते हुए, अपने कार्यकाल में बस 'अपनी' ही सोचकर मुँह फेर लिया करते हैं!
      ४. इतने प्रतिशत लोग (७५) हिन्दी बोलते और समझते हैं, विश्व में तीसरे स्थान पर होने का गौरव भी प्राप्त है इसे ! तो फिर हर साक्षात्कार में 'अँग्रेज़ी' जानना, पहली शर्त क्यों होती है ? ४ लोगों के बीच में अँग्रेज़ी में बातचीत चल रही हो, भले ही कुछ भी बोल रहे हों, लेकिन वहाँ एक हिन्दी भाषी ( जो उनसे बेहतर जानता है ) चुप क्यूँ हो जाता है ? ये हीन-भावना किसने भरी उसमें ? 'अँग्रेज़ी' हम सब पर इतनी हावी कैसे हो गई ? क्यूँ हुई ? किसने होने दिया ? क्या कोई रोकने वाला नहीं था कभी ? इतने वर्षों से जितनी भी 'सरकारें' आईं उनका ध्यान इस ओर क्यों नही गया ??
      ५. सही कहा आपने..'जो दिमाग़ से लिखते हैं वो दिल पर चोट देते हैं'......और मेरा मानना है, "जो दिल पर चोट खाते हैं, वो दर्द से लिखते हैं, उसे पढ़ने के लिए दर्द को महसूस करना आना चाहिए वरना अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है."
      पोस्ट में यदि आपने अंतिम ४ पंक्तियों को दोबारा पढ़ा होता, तो संभवत: आपको और मुझे इतना न लिखना पड़ता ! फिर भी धन्यवाद, पोस्ट पर आने और प्रतिक्रिया देने के लिए ! मुझे अपनी बात को और स्पष्ट कर देने का मौका देने के लिए भी आभार तो बनता है ! लिखते रहें ! :)

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    2. इस विषय पर बहुत देर तक और बड़ी बहस हो सकती है....
      Market में बिकने वाली हर एक चीज हमारी आवश्यकता की हो ये जरूरी नहीं

      सरकार ने हिंदी को एक अनिवार्य विषय बना दिया है आप जिस भी माध्यम में पढो हिंदी आपको पढनी ही पड़ेगी।
      बस अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों को चाहिए की वो हिंदी को भी प्रबलता से पढ़ाये।
      अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा है इसलिए इसे हम ही नहीं सीख रहें हैं बल्कि सारी दुनिया सीख रही हैं
      शायद इसीलिए ही बड़े बड़े पदों के लिए अंग्रेजी के ज्ञाता होना जरूरी है।

      एक भाषा की दूसरी भाषा से तुलना करने का मतलब है कि उनमें से किसी एक भाषा को उच्च बताना और दूसरी को निचा दर्शाना।
      अपनी अपनी भाषाएँ सबको प्यारी लगती हैं।


      लगता है आपकी और हमारी खूब जमेगी..
      एक दो दिन रुक कर मैं भी हिंदी पर कुछ पोस्ट करने वाला हूँ , जब तक ये हिंदी दिवस का मामला भी खत्म हो जायेगा।

      आभार :) :)

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    3. जी, यह वाक़ई एक लंबी बहस का विषय है....इस पर फिलहाल विराम लगाना ही बेहतर है !

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  4. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  5. बहुत सुन्दर हिंदी दिवस पर सामयिक चिंतन भरी रचना

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  6. ​सही और सार्थक सवाल उठाती सटीक रचना

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    1. आपका बहुत-बहुत आभार !

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  7. बहुत-बहुत धन्यवाद, कुलदीप जी !

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  8. दफन होती बेटियां हिंदी की तरह माँ (भारत माँ )की ही कोख में।

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    1. यह और भी गंभीर चर्चा का विषय है :(

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  9. बहुत बढ़िया...
    हिन्दी की प्रसिद्ध रचनाओं का सुन्दर सामंजस्य बिठाया है...
    हिन्दी हैं हम, हिन्दी हमें प्यारी है !

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