मिलना तो मेरा तय ही है, तुमसे
इस बार नहीं, तो ना सही
अगले जन्म में,फिर लौटकर मैं आऊँगी
पसर जाऊंगी, बिन बुलाए ही
सर्द से उस मौसम में
तेरे आँगन की धूप बनकर
बारिश के चमकीले मोतियों में ढलकर
हो सका तो वृक्ष ही बन जाऊं, कभी
तेरे उस पसंदीदा गुलमोहर का
जिसे रोज ही देखने का मोह
तब भी ना छोड़ पाओगे तुम
बैठोगे कुछ पल तो मेरे साथ
यूँ कहने को, बैरी दुनिया के लिए
बस वहाँ सुस्ताओगे तुम.
क्यूँ ना बनू मैं 'सूरजमुखी'
जो खिल जाए, रोज ही तुम्हे देखकर
या कि बन छुईमुई, लजा के कभी
खुद ही में सिमट जाऊंगी
ओढ़ा दूंगी आवरण, तेरे दुखो को
बादलों सी छाया बन
और नदिया सी बह, तेरे आँसुओं को
खुद में ही समा ले जाऊंगी
भर दूँगी हर रंग तेरे जीवन में
सदियों के लिए
चाहत की गर्मी से अब
हर गम तेरा पिघलाऊंगी
ए मीत मेरे, ये प्रीत तेरी
सदियों से है, सदियों के लिए
यूँ अभी जाना तय है मेरा,
बस साथ हूँ, कुछ पल के लिए
है ग़म तो बस यही, कि ये दम
तेरे पहलू में ही निकले, तो बेहतर होता
ना होता कुछ भी पास हमारे
बस इक पल को ही सही
पर साथ ये मुक़द्दर होता
ना करना तू अफ़सोस, इस जमाने का
इसका तो काम ही है, आज़माने का
पर वादा है मेरा, अब भी तुझसे
बन हर रंग तेरे जीवन का
इंद्रधनुष सी तेरे आसमान पर छा जाऊंगी
मिलना तो मेरा तय ही है, तुमसे,और तब
तेरे कहने से भी, वापिस नहीं फिर जाऊंगी.
प्रीति 'अज्ञात'
No comments:
Post a Comment