Saturday, July 1, 2017

बात अभी खुली नहीं!

सुना है सलीम चाचा ने कल
अपनी प्रेस की दुकान जल्दी बंद कर  
ख़ूब जलेबियाँ खाईं
काम वाली कजरी भी 
रात से दिया-बाती करे बैठी है 
इधर सब्जी बेचने वाला चंदू भी 
सूरज से पहले ढेला भर तरकारी ले आया
स्वयं से दोगुने बोझ को ढोते हुए भी 
कल्लू मजदूर आज मुस्कुरा रहा
सफाई वाली काकी ने भी 
अँधेरे ही सारा कचरा जला 
सबकी सुबह रोशन कर दी 
ये सारे और इनसे कई 
रात भर जश्न में रहे
उधर चौराहों पर कई लोग 
अब तक मुँह फुलाए 
धरना दिए बैठे हैं 
भोली समझ का फेर 
या नासमझी का अनशन
बात अभी ठीक से खुली नहीं!
- प्रीति 'अज्ञात'  कॉपीराइट © 2017

दिया जलाओ!

लग रहा जैसे राजा राम 
आज अयोध्या लौटे हैं 
या फिर कृष्ण जन्मोत्सव की 
मधुर धुन है कोई
है पाण्डवों का शंखनाद,
न-न, अशोक अब चक्रवर्ती हुआ!

चन्द्रगुप्त मौर्य, शिवाजी, अकबर, 

पृथ्वीराज और महाराणा प्रताप भी 
इतिहास के पन्नों पर परस्पर हाथ थामे 
बैठे हैं हैरत में, श्वांस रोके हुए  
कि अब एक नया सुनहरा पृष्ठ
जुड़ने वाला है
स्वतंत्रता सेनानियों ने भी दी है
पूरे बयालीस तोपों की सलामी
   
ये 'दीन-ए -इलाही' सा आगाज़ है
सरगम का सुरीला साज है 
कि गंगोत्री से निस्सरित 
पवित्र गंगा अब दूधिया हो चली
ताजमहल की चमक से चुँधिया रही आँखें
अचानक सारी ऊंची इमारतें हरियाते
जंगलों का रूप धरने लगीं
विलुप्त प्राणी पुनर्जीवित हुए 
वातावरण सुगन्धित हो महक रहा
बचपन की खोई मासूमियत लौट आई 
और स्त्री प्रजाति भयमुक्त है 
उमंगें हैं, खुशहाली है 
बेमौसम दीवाली है 
दिया जलाओ....दिया जलाओ!
कि आपको साक्षी होने का पुण्य मिला!
- प्रीति 'अज्ञात'  कॉपीराइट © 2017