क्या हो गया है रे तुझको !
क्यूँ अब तुम खुद से ही खुद को
छुपाए फिरते हो ?
ये चुप्पी कैसी है पसरी
तेरे - मेरे दरमियाँ
कि अब तो ख्वाब में भी तुम
मुँह फुलाए मिलते हो !
है नाराज़गी, मुझसे तेरी
या मायूसी छाई बस यूँ ही
जो पागलों से तुम यूँ
बौखलाए फिरते हो !
कभी सोचूँ, क्या पता
छेड़ रहे हो मुझको
और बेवजह ही बनके
इतराए फिरते हो !
हटो, छोड़ो ना !
क्या अब डरना,
मेरे ख्वाबों से
ये तो बस लम्हे हैं
हंसते हैं हम, जी लेते हैं
नहीं होंगे, कभी ये सच
पता है ना तुम्हें
फिर यूँ ही मुफ़्त में क्यों
सकपकाए फिरते हो !
आओ ना, बैठो मेरे पास
वो पहले की तरह
बनो सुगंध धड़कनों की
अब सुमन की तरह
कहानी 'एक ही तो है'
कहाँ 'तेरी' या 'मेरी'
फिर क्यूँ इस राज़ को
दिल में दबाए फिरते हो !
समझो ना, जो है मैने कहा
हमारे बीच अब,गैरों सा तो
कुछ भी ना रहा
यक़ीन नहीं तो, देखो इधर
अब बोलो ना मुझे
निगाहें फेर के क्यूँ
मुस्कुराए फिरते हो !
प्रीति 'अज्ञात'
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