मत देखना तुम मुझे अब कभी पलटकर
कि नहीं देख सकोगे, मेरे चेहरे की ये उदासी
रख लेना जोरों से हाथ अपने कानों पर,
जो कभी आहट सुनो, आने की तुम ज़रा-सी.झटक देना सर अपना, जब बनने लगे
आँखों में बीते लम्हों की तस्वीर्रे
नहीं बदल सका है कोई चाहकर भी
हाथों की लकीरें और बेबस तक़दीरें.
कोई प्यार से पुकारे, न सुनना उसे भी
मेरा नाम तक जेहन में न आने देना
यादों का क्या, मुफ़्त ही मिल जाती हैं
भुला दो हँसकर, बस दिल तक न जाने देना.
हाँ, कह दो अब अकड़कर कि ये तो तुम
बड़ी ही आसानी से कर पाओगे
पर सच कहना, क्या तुम भी फिर
मेरी ही तरह यूँ घुट-घुटकर न मर जाओगे ?
प्रीति 'अज्ञात'
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