संस्कारी समाज में
बलत्कृत औरतें
अब कभी नहीं कर सकतीं प्रेम
कि भद्र प्रेमियों के लिए जुगुप्सा का कारण,
शर्म, अभिशाप का विषय है उनकी उपस्थिति
और विवश हो ढूँढनी पड़ती है इन सच्चे प्रेमियों को
हर माह इक नई देह
अस्वीकृत है इन औरतों का खुलकर हँसना- बोलना
उस पर सामान्य रह,
लोगों के बीच दोबारा जीने की कोशिश?
ओह! नितांत अभद्र है, अशिष्ट है, व्यभिचार है!
निर्लज्जता है, अश्लीलता है....अस्वीकार है!
सुन रही हो न स्त्रियों!
वे कहते हैं...
तुम जैसों का जीना
किसी वैश्या से भी कहीं ज्यादा दुश्वार है!
कि बलत्कृत औरत का कोई हो ही नहीं सकता
सिवाय छलनी देह और कुचली आत्मा के!
तो क्या हर बलत्कृत औरत को
उसके दोस्त, परिवार वालों और प्रेमी
की तिरस्कृत निग़ाहों के
तिल-तिल मार डालने से बहुत पहले
सारा स्नेह, ममता, मोह त्याग
स्वतः ही मर जाना चाहिए सदैव?
या फिर यूँ हो कि
न्याय की प्रतीक्षा कर गुज़र जाने से बेहतर
किसी रोज़ वो भी
पथरीले बीहड़ में छलाँग लगाए
और फूलन बन जाए!
- प्रीति 'अज्ञात'
#फूलन देवी, पैदा नहीं होती....समाज बनाता है!
तस्वीर: गूगल से साभार
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद
समय उसी ओर मोड़ रहा है जहाँ फूलन बनना ही राह है
ReplyDeleteजिंदगी दर्द है ...... पढ़ कर जाना
ReplyDeleteसटीक मर्म स्पर्शी यथार्थ।
ReplyDeleteबलात्कार शरीर का हुआ आत्मा शरीर है ही नहीं
ReplyDeleteदोषी बलात्कारी है....आत्मबल और संयम बनाकर इस मनोस्थिति में दोषी को पहुँचाना होगा....
उठो नारी तुम्हें हरक्षण अपना सम्बल बनाना होगा
बहुत हृदयस्पर्शी सृजन..
webinhindi
ReplyDeleteआपकी लेख बहुत अद्भुत है। इस जानकारी पूर्ण लेख के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (29-11-2019 ) को "छत्रप आये पास" (चर्चा अंक 3534) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
-अनीता लागुरी 'अनु'
मर्मस्पर्शी रचना
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ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
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ReplyDeleteअति सुन्दर प्रस्तुति।