Thursday, November 15, 2018

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उम्र के सिरहाने
कुछ ज़िंदा ख़्वाहिशें
रखीं थीं कभी 
गुज़रते वक़्त को झाँकती 
सिकुड़ती ख़्वाहिशों की बारादरी में
उम्र बढ़ती रही
और फिर यूँ भी हुआ
एक दिन अचानक 
कि सब कुछ...
...रीता ही ख़त्म हो गया
अब सिर्फ़ ख़ालिस रूह है
जो मरती नहीं 
दफ़न ख़्वाहिशें हैं
जो उमड़ती नहीं 
- प्रीति 'अज्ञात'