Friday, July 3, 2015

बच्चू

तुम इतने छोटे थे
कि याद भी नहीं होगा तुम्हें
सोचती थी तब अकेली
कैसे संभालूंगी इसे
दूर देश, न कोई आसपास
खरीदी किताबें
हाँ, तब भी यही थीं साथी
समझा हर एक पन्ना
और कुछ तुम्हारे साथ
समझती रही
जीती रही तुझमें
अपना खोया बचपन
मुस्कुराई तुम्हारी हर मुस्कान के साथ
सिखाया हर पाठ ज़िंदगी का
सही-ग़लत, अच्छा-बुरा
वो भी जो मैं ख़ुद
अब तक न सीख सकी
तभी तो तुम बोल देते हो
बड़े प्यार से मुझे 'बच्चू'

समय के साथ-साथ पार कर ली
तुमने मेरी लंबाई
हा,हा...ये टारगेट यूँ भी 
छोटा ही तो था न !
खैर...जा रहे हो तुम
और जी घबरा रहा मेरा
कौन उठाएगा रोज तुम्हें
न जाने समय पर खाओगे भी या नहीं
दोस्त कौन-कैसे होंगे
फिर देती हूँ तसल्ली
अपने ही मन को
सभी तो तुम जैसे ही
होंगे न वहाँ
उनकी माँ भी यूँ ही
घबराती होगीं
और वो बच्चे भी समझाते होंगे
तुम्हारी तरह
डोंट वरी, मम्मा!

यूँ विश्वास है तुम पर,
खरे सोने-सा
हो भी व्यवस्थित
और हर माँ की तरह
आँख के तारे हो मेरे
डर तुमसे नहीं
मेरी हर दुआ
हर पल तेरे साथ है
फिर भी न जाने क्यूँ
डरा देता है रोज का अख़बार!
जानते तो हो न
कितनी फट्टू है तेरी माँ
एक बात और है..... 
उफ्फ, अब कौन भगाएगा
वो गंदी-सी छिपकली ! :(  
- प्रीति 'अज्ञात'

4 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, नौशेरा का शेर और खालूबार का परमवीर - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. सुन्दर रचना !
    मेरे ब्लॉग डायनामिक पर आपका स्वागत है !
    www.manojbijnori12.blogspot.in

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  3. निश्छल प्रेम के सी एहसास को शब्दों के पंख लगा दिए हैं आपने ...
    बहुत ही भावपूर्ण रचना ...

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