दिनकर की किरणों संग
सूरजमुखी का खिल जाना,
सर्दी में उन्मुक्त हो
हरसिंगार का बिखर जाना,
जूही की बेल का
तने से यूँ लिपट जाना,
और मुंडेर पर बैठी चिड़िया का
सुबह-सुबह चहचहाना.
अच्छा लगता है.......
समुद्र-तट पर लहरों का
बेताबी से टकराना,
दूर कहीं क्षितिज पर
ज़मीं-आसमाँ का मिल जाना,
सूरज के छुपते ही
चंदा का मचलकर आना,
और अमावस की रात में
सप्त-ऋषि का टिमटिमाना.
सुकून-सा मिलता है......
देख गिलहरी का
और चोंच डुबोकर,चिड़िया का
प्यार से पानी गटक जाना.
सच,प्रकृति के आँचल में
कितने अनुपम ये पल हैं!
पर इन सबका संगम है
'तेरा हौले से मुस्काना'.
प्रीति 'अज्ञात'
खुबसुरत़़़ प्रकृति का सामीप्य़़़ और प्रेम की अनुभूति़़़
ReplyDeleteआभार, दयानंद जी !
Deleteसुकून सा मिलता है
ReplyDeleteदेख गिलहरी का
कुतुर कुतुर करके खाना
सच कहा आपने
मेरा प्रिय काम है
मुझे भी बेहद पसंद है, उन्हें देखना ! शुक्रिया दी ! :)
ReplyDelete