लड़की ढूँढ रही थी पानी
तलाश करते-करते
पपड़ा चुके थे होंठ
सूखता गला रेगिस्तान से रेतीले अंधड़ों से जूझते हुए
गटकने लगा स्वयं को
पर फिर भी तैयार न था पराजय को
इधर धरती पटी हुई थी कंक्रीट के पक्के विकास से
और लेनी पड़ी थी उदास माटी को विदाई
वो चाहते हुए भी नहीं सोख पाई
बीती बारिश को
होती आज तो अवश्य ही अपनी छाती से लगा
बुझा देती हर नन्हे पौधे की प्यास
पौधे जो एक दिन वृक्ष बन
अपनी शाखाओं से आसमान तक पहुँच
बादलों को बरसने का निमंत्रण दे सकते थे
वे बेचारे भ्रूण हत्या का शिकार हुए
गाँव में हर तरफ सूखा मुँह लिए
लज्जित खड़े थे पोखर, नदी, तालाब, तलैयाँ
लड़की जान चुकी थी कि
आज भी घर में नहीं पकेगा खाना
भोजन की उम्मीद में उसे भागना होगा
शहर की ओर
सुना है, शहर में सब मुमकिन है!
यहाँ आधुनिकीकरण की होड़ ने
भले ही रेत दिया है धरती का गला
पर पानी क़ैद है बोतलों में
खूब बिकता है औने-पौने दामों में
उसे ख़रीदना होगा
जीवन का मूल आधार
गँवार लड़की कहाँ जानती है
अपने मौलिक अधिकार!
लड़की दौड़ रही है
जैसे दौड़ा करती थी उसकी माँ
और उसके पहले नानी
-प्रीति 'अज्ञात'
#विश्व_जल_दिवस #World_Water_Day
Pic. Credit: Google
तलाश करते-करते
पपड़ा चुके थे होंठ
सूखता गला रेगिस्तान से रेतीले अंधड़ों से जूझते हुए
गटकने लगा स्वयं को
पर फिर भी तैयार न था पराजय को
इधर धरती पटी हुई थी कंक्रीट के पक्के विकास से
और लेनी पड़ी थी उदास माटी को विदाई
वो चाहते हुए भी नहीं सोख पाई
बीती बारिश को
होती आज तो अवश्य ही अपनी छाती से लगा
बुझा देती हर नन्हे पौधे की प्यास
पौधे जो एक दिन वृक्ष बन
अपनी शाखाओं से आसमान तक पहुँच
बादलों को बरसने का निमंत्रण दे सकते थे
वे बेचारे भ्रूण हत्या का शिकार हुए
गाँव में हर तरफ सूखा मुँह लिए
लज्जित खड़े थे पोखर, नदी, तालाब, तलैयाँ
लड़की जान चुकी थी कि
आज भी घर में नहीं पकेगा खाना
भोजन की उम्मीद में उसे भागना होगा
शहर की ओर
सुना है, शहर में सब मुमकिन है!
यहाँ आधुनिकीकरण की होड़ ने
भले ही रेत दिया है धरती का गला
पर पानी क़ैद है बोतलों में
खूब बिकता है औने-पौने दामों में
उसे ख़रीदना होगा
जीवन का मूल आधार
गँवार लड़की कहाँ जानती है
अपने मौलिक अधिकार!
लड़की दौड़ रही है
जैसे दौड़ा करती थी उसकी माँ
और उसके पहले नानी
-प्रीति 'अज्ञात'
#विश्व_जल_दिवस #World_Water_Day
Pic. Credit: Google
सटीक
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ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
24/03/2019 को......
[पांच लिंकों का आनंद] ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
इधर धरती पटी हुई थी कंक्रीट के पक्के विकास से
ReplyDeleteऔर लेनी पड़ी थी उदास माटी को विदाई
वो चाहते हुए भी नहीं सोख पाई
बीती बारिश को
विश्व जल दिवस पर बहुत ही सुन्दर रचना....
सटीक मृम भेदी।
ReplyDeleteबेहद मार्मिक
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन आदरणीया
बहुत सुंदर रचना ,जिस तरह जल का दोहन हो रहा है वो दिन दूर नहीं जब पानी की बून्द को भी तरसना पड़े ,सादर
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