Thursday, May 10, 2018

यूँ ही ...

चलो इस तरह भी जिया जाए 
ख़्वाब को साथ न लिया जाए 

ग़म की औक़ात कुछ नहीं रहती 
घूँट तबस्सुम से जो पिया जाए 

अपनी ख़ातिर ही जीना क्या जीना
ग़ैरों के लिए कुछ तो किया जाए

मुल्क़ से इश्क़ भी इबादत है 
क़र्ज़ इसका चुका दिया जाए 

गिला ज़माने से कब तक करना 
अपने ज़ख्मों को ख़ुद सिया जाए

नफ़रतों का कुछ नहीं हासिल 
चलो इंसान बन जिया जाए 
- © प्रीति 'अज्ञात'

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