Friday, March 3, 2017

टूटा हुआ आदमी

टूटा हुआ आदमी 
प्रेम का मारा है
प्रेम में हारा है
डरता है लकीरों से 
और गुपचुप करता है प्रेम

टूटा हुआ आदमी
मुँह खोल के हँसता है
लिखता जीवन और 
ख़ुद सौ दफ़े
रोज़ाना मरता है 

टूटा हुआ आदमी
सूरज-सा सांझ-सवेरे 
डूबता, निकलता है 
थमा आसमां सबको 
दूर गहरे दरिया उतरता है

टूटा हुआ आदमी
सपने टूट जाने पर भी
नहीं हारता
टूटकर करता है प्रेम 
क़तरा-क़तरा बिखरता है
-प्रीति 'अज्ञात' 

1 comment:

  1. टूटे आदमी की व्यथा को लिखा है ... प्रेम
    में पढ़ने वाला हमेशा प्रेम करता रहता है .... बहुत ख़ूब

    ReplyDelete