Monday, January 4, 2016

छटपटाहट

श्वासों का आवागमन
झील भरे ये दो नयन
सन्नाटों से भौंचक हो
आह्वानित नव-आंदोलन

मस्तिष्क-पटल करे गर्जन
मेघों-सा भीषण ये क्रंदन
हृदय-विदारक पीड़ा से
छलनी हुआ, जो था सघन

पर-वेदन से व्यथित हुआ
क्यूँ इतना संवेदित हुआ
प्रश्नों के चौराहे पर
किसका था ये आगमन ?

गहराई में आहट-सी
बस अंतिम छटपटाहट ही
प्राण-पखेरू उड़ने को
चीत्कारें भरता मेरा मन !
- प्रीति 'अज्ञात'

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