Saturday, March 1, 2014

यूँ ही....

हाथों में एक रिपोर्ट-कार्ड
वही इकलौता कार्ड 
जहाँ हम चाहते हैं, कि
हर टेस्ट का रिज़ल्ट 'नेगेटिव' हो.
कुछ पलों के लिए, जैसे 
थम-सा जाता है समय
यूँ तो हुआ करता है, बीच में
लोगों का आवागमन
सुनते हैं किस्से-कहानियाँ
थोड़ी राय, थोड़ा आश्वासन.
जीवन का सारा मनोविज्ञान
एक ही झटके में
तैरने लगता है आँखों में
जब चल रही होती है
एक शल्य-चिकित्सा मरीज पर
और दूसरी उसके ही मस्तिष्क के भीतर !
मन उधेड़कर रख देता है
भौतिकवादी दुनिया का हर निर्मम सच.
बहुत कुछ महसूस होता है
दरवाजे के उस पार, पर
अचानक जैसे सब, सिमट जाता है
एक कमरे के अंदर
और कोई कहता है कि, जीने के लिए ज़रूरी है
बस गिनती की कुछ धड़कनें
और श्वास-प्रश्वास की मद्धिम-सी गति
छोड़ो न ! व्यर्थ की भागा-दौड़ी
सुनो तो ज़रा, करीब से
देखो, कितना कुछ कह गया,
बिन बोले ही
अस्पताल का ये छोटा सा कमरा !

प्रीति 'अज्ञात'

10 comments:

  1. कल 05/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  2. मार्मिक प्रस्तुति

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  3. शुक्रिया, राकेश जी !

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  4. काश इस रीपोर्ट कार्ड का रीसल्ट हर समय निगेटिव रहे ....... :)
    दिल की बात, सुंदर !!

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  5. धन्यवाद, मुकेश जी !

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  6. एक सच जिसे बिल्‍कुल सटीक शब्‍द दिये हैं आपने ... बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति... आभार

    संजय भास्कर
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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    1. आपका भी बहुत-बहुत शुक्रिया, संजय जी !

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  7. आनंद Movie याद आ गई ।

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    1. :) शुक्रिया ! पोस्ट पर इतना समय देने के लिए भी धन्यवाद ! दोस्तों के पास भी अपनों के लिए वक़्त नहीं होता , ऐसे में पूरी तरह से अपरिचित लोगों का पोस्ट पर प्रतिक्रिया देना सुखद लगता है. क्योंकि, हम लिखते ही इसलिए हैं, ki सब पढ़ें ! हमारा लेखन ही हमारी पहचान है. आते रहें, दयानंद जी !

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