Tuesday, June 25, 2013

अब तुम.....

जब कभी ये आँसू गिरें तो मुझसे पहले, इन्हें पोंछने आओगे न तुम ! उदासी छलकी या रूठी मैं कभी तुमसे ही खफ़ा होकर तो प्यार से मुझे मनाओगे न तुम ! मुस्कुराहट पर मेरी हँसोगे पहले; फिर जोरों से संग मेरे खिलखिलाओगे न तुम ! मेरी हर अदा पर फ़िदा हो थामोगे आँचल मेरा, फिर महफ़िल में मुझसे भी ज़्यादा इतराओगे न तुम ! मेरी लालची निगाहें देख चुरा लाए थे फूलों का गुच्छा इक दिन और छुपा लिया था जो गुलाब हाथों को पीछे करके अब वो अमानत मुझे सौंप इस इंतज़ार को फ़ना कर जाओगे न तुम ! और जग पड़ी मैं अचानक चौंककर जैसे ये तो था ख्वाब; पूरा होता भी तो कैसे. पथराई निगाहें अब भी टिकीं उस रस्ते पर सिमटे आँसू भी सारे वहीं बिलख-बिलखकर उदासी अब घर है मायूसी का और मुस्कुराहट बनी आवरण, बोझिल चेहरे का. अब खुद ही तोड़ लिया करती हूँ फूलों का इक नाज़ुक गुच्छा और गुलाब देख झट से मुँह फेर लिया करती हूँ. सिहरने लगी हूँ, अपनी ही परछाईयों की बेधड़क सी आवाजाही देखकर.
उस खंडहर में गूँजती वो आवाज़ें
अब भी डराया करती हैं मुझे
पलटकर देखूं, तो वही
चीख उठती है, कानों में मेरे
क़ि उम्र-भर मुझसे मिलने
इस बार भी नहीं आओगे अब तुम !!

प्रीति 'अज्ञात' 

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