तू ना जाने, आसपास है...ख़ुदा !!
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अजी, ये गीत तो भारत सरकार द्वारा जनहित में जारी होना चाहिए. हर शहर, हर गली-मौहल्ले, हर चौराहे पर दिन-रात बजना चाहिए. जिससे आम जनता भी इस चेतावनी को समझ सके और अपने बचाव में खुद आगे आए. आप खुद ही देख लीजिए.....
"तू ना जाने, आसपास है...खुदा"
अरे, इसका इशारा हमारी सड़कों पर पाए जाने वाले गोल-मटोल प्यारे-प्यारे गड्ढों से है. तो जी, ज़रा संभल के ! फिर ना कहना कि हमने सावधान नहीं किया !!
आगे की लाइन...."तेरी क़िस्मत तू बदल दे "
कवि कहना चाहते हैं, कि तू ऐसा बंदा है,जिसका कोई भरोसा नहीं, ना जाने कब अपनी टाँगें खुद ही तोड़ दे. इसलिए आँखें खोल के चल !
"रख हिम्मत साथ चल दे"
कवि ने पुनः समझाने की कोशिश की है, कि अगर गिर भी गया है तू, तो 'इट्स ओके, बेटा ! पर भविष्य में अपना ध्यान रखना, दोबारा ऐसी ग़लती ना हो !
"मेरे साथी, तेरे कदमों के हैं निशान"
कविराज आगे कहते हैं..कि ये जो मिट्टी पर निशान देख रहे हो, ये उन बेचारी अभागी चप्पलो के हैं, जिन्होनें यहीं अपना सफ़र ख़त्म किया !
इसलिए, हे ख़ुदा की बनाई इस दुनिया के नमूनों....डरो मत ! ये अपना ही देश है, गड्ढों से मत घबरा, एक दिन ये ज़रूर भरेंगे. बस, ज़रा लोगों की ज़ेबें तो भर जाने दे ! " इक दिन आएगा, गड्ढा भर जाएगा......."
प्रीति 'अज्ञात'@ :)))))))))))))))))))))))
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