मेरी नन्ही सी दुनिया..... 
मेरी नन्ही सी दुनिया में 
ज़्यादा कुछ भी नहीं !  
मुट्ठी में बंद, हौसले हैं थोड़े 
पलकों में चंद ही, सपने हैं घिरे 
बिजली सी चमक समेटे, पल भी हैं 
कुछ यूँ ही, बस सिरफिरे 
उम्मीदों से लहलहाता, बेवज़ह ही खिलखिलाता 
एक अपना सा आसमाँ है ........... 
थोड़ी सी ज़मीं भी है, वहीं कहीं पैरों तले 
दिखता यहाँ से, मुझको सारा जहाँ है......... 
हौसले साथ छोड़ देते हैं अक़सर, 
जब नाक़ामी दामन थाम लेती है. 
सपने भी बिखर जाते हैं यूँ तो, 
जब कभी हक़ीक़त आके सलाम देती है. 
घटाओं की चिलमनों में जाकर कहीं 
छुप जाते हैं वो सारे ही पल. और 
चकनाचूर हुई उम्मीदों से कई बार, 
सिहर उठता है, बरस के आसमाँ मेरा. 
पर साथ देने को अब भी,  
वही ज़मीं है मेरी अपनी..... 
मेरी नन्ही सी दुनिया में 
ज़्यादा कुछ भी नहीं !! 
प्रीति 'अज्ञात' 


 


