आज आसमाँ का आँचल गीला क्यूँ है
लग रहा है जैसे रोई हो रात
चाँदनी के बिन बिलख-बिलख
तभी तो स्याह हुआ रंग इसका
फैला हुआ काजल, और सूजी आँखें
सुबह से पसर गईं, रोशनी के आगे
लोग इन्हें काली घटायें कहें तो कहें
अंजान हैं, कि हर बरसता बादल
सुनाता है, नित नई कहानी
उमस, घुटन और संघर्ष की
जो कभी घबराकर और कभी भरभराकर
बादलों से अनायास ही रिस पड़ती है.
प्रीति 'अज्ञात'
लग रहा है जैसे रोई हो रात
चाँदनी के बिन बिलख-बिलख
तभी तो स्याह हुआ रंग इसका
फैला हुआ काजल, और सूजी आँखें
सुबह से पसर गईं, रोशनी के आगे
लोग इन्हें काली घटायें कहें तो कहें
अंजान हैं, कि हर बरसता बादल
सुनाता है, नित नई कहानी
उमस, घुटन और संघर्ष की
जो कभी घबराकर और कभी भरभराकर
बादलों से अनायास ही रिस पड़ती है.
प्रीति 'अज्ञात'
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteशुक्रिया, कौशल जी !
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