Wednesday, April 30, 2014

ज़िंदगी

मैंने देखे हैं -
सपने बुनते हुए लोग
और ढहते हुए ख़्वाब
जगमगाती हुई एक रात
और सिसकते जज़्बात
मचलते हुए अरमान
और टूटता आसमान !

महसूस की है -
मुस्कुराहट में छिपी उदासी
और अंदर की बदहवासी
महफ़िल में बसी खामोशी
और हर इक कोना वीरान
हालात से चूर-चूर
और जीने को मजबूर !

और जाना इस राज़ को -
कि मुरझाए से कुछ चेहरे
हर पल बदलते रिश्ते
टूटते हुए घरौंदे
उदासी की छाई बदली
भीगे हुए-से पल
ही तो प्रतिबिंब हैं
उस 'शै' का
जिसे 'ज़िंदगी' कहते हैं....!

प्रीति "अज्ञात'

7 comments:

  1. इस उधेड़बुन, बनते-बिगड़ते घरौंदो, अधूरे ख़्वाब और अनकहे जज़्बात का ही नाम तो ज़िंदगी है..
    सुंदर अल्फाज़ और उतने ही उम्दा अहसासों से सजी बेहतरीन रचना..

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  2. बहुत बहुत खूबसूरत ! हर पंक्ति मन की गहराइयों से निकली प्रतीत होती है और

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  3. बहुत बहुत खूबसूरत ! हर पंक्ति मन की गहराइयों से निकली प्रतीत होती है

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  4. शुभ प्रभात
    खूबसूरत अभिव्यक्ति
    उम्दा रचना

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  5. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  6. अंकुर जी, सुशील कुमार जी, संजय जी, विभा रानी जी, यशवंत जी...आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया :)

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