मैंने देखे हैं -
सपने बुनते हुए लोग
और ढहते हुए ख़्वाब
जगमगाती हुई एक रात
और सिसकते जज़्बात
मचलते हुए अरमान
और टूटता आसमान !
महसूस की है -
मुस्कुराहट में छिपी उदासी
और अंदर की बदहवासी
महफ़िल में बसी खामोशी
और हर इक कोना वीरान
हालात से चूर-चूर
और जीने को मजबूर !
और जाना इस राज़ को -
कि मुरझाए से कुछ चेहरे
हर पल बदलते रिश्ते
टूटते हुए घरौंदे
उदासी की छाई बदली
भीगे हुए-से पल
ही तो प्रतिबिंब हैं
उस 'शै' का
जिसे 'ज़िंदगी' कहते हैं....!
प्रीति "अज्ञात'
सपने बुनते हुए लोग
और ढहते हुए ख़्वाब
जगमगाती हुई एक रात
और सिसकते जज़्बात
मचलते हुए अरमान
और टूटता आसमान !
महसूस की है -
मुस्कुराहट में छिपी उदासी
और अंदर की बदहवासी
महफ़िल में बसी खामोशी
और हर इक कोना वीरान
हालात से चूर-चूर
और जीने को मजबूर !
और जाना इस राज़ को -
कि मुरझाए से कुछ चेहरे
हर पल बदलते रिश्ते
टूटते हुए घरौंदे
उदासी की छाई बदली
भीगे हुए-से पल
ही तो प्रतिबिंब हैं
उस 'शै' का
जिसे 'ज़िंदगी' कहते हैं....!
प्रीति "अज्ञात'
इस उधेड़बुन, बनते-बिगड़ते घरौंदो, अधूरे ख़्वाब और अनकहे जज़्बात का ही नाम तो ज़िंदगी है..
ReplyDeleteसुंदर अल्फाज़ और उतने ही उम्दा अहसासों से सजी बेहतरीन रचना..
सुंदर भाव पूर्ण ।
ReplyDeleteबहुत बहुत खूबसूरत ! हर पंक्ति मन की गहराइयों से निकली प्रतीत होती है और
ReplyDeleteबहुत बहुत खूबसूरत ! हर पंक्ति मन की गहराइयों से निकली प्रतीत होती है
ReplyDeleteशुभ प्रभात
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
उम्दा रचना
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
अंकुर जी, सुशील कुमार जी, संजय जी, विभा रानी जी, यशवंत जी...आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया :)
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