माँ के आँसू, कैसे समझें
सुख में दुख में, ये गिरते हैं.
बारिश के मौसम में बूँदें
पतझड़ में पत्ते गिरते हैं.
जब पहला 'शब्द' कहा कुछ हमने,
या हम पहली बार 'चले' थे.
स्कूल का 'पहला दिन' था अपना,
या फिर कभी, 'ईनाम' मिले थे.
माँ रोई हर उस इक पल में
पूछा, कहा 'खुशी है ऐसी'
समझ ना आया, कुछ भी हमको
रोने की ये वज़ह है कैसी?
जब भी कोई ग़लती करते,
डाँट पड़े, या खाते मार.
हम से ज़्यादा, खुद वो रोती,
कहती ये मेरा अधिकार.
जीवन की असली बगिया में,
पाँव रखे, हमने जिस दिन.
इंतज़ार वो तब भी करती,
चिंता की घड़ियाँ गिन-गिन.
लाख़ कहा उसको ये हमने,
फिक्र हमारी क्यूँ करती हो?
खुद का भी तुम,कभी तो सोचो
मुफ़्त में ही आँखें भरती हो!
सोचो, मेरी 'माँ' के आँसू
उन लम्हों में भी, वो रो दी.
'माँ' है तो दुनिया है सबकी
'ज़िंदगी' वरना 'व्यर्थ' में खो दी.
प्रीति 'अज्ञात'
सुख में दुख में, ये गिरते हैं.
बारिश के मौसम में बूँदें
पतझड़ में पत्ते गिरते हैं.
जब पहला 'शब्द' कहा कुछ हमने,
या हम पहली बार 'चले' थे.
स्कूल का 'पहला दिन' था अपना,
या फिर कभी, 'ईनाम' मिले थे.
माँ रोई हर उस इक पल में
पूछा, कहा 'खुशी है ऐसी'
समझ ना आया, कुछ भी हमको
रोने की ये वज़ह है कैसी?
जब भी कोई ग़लती करते,
डाँट पड़े, या खाते मार.
हम से ज़्यादा, खुद वो रोती,
कहती ये मेरा अधिकार.
जीवन की असली बगिया में,
पाँव रखे, हमने जिस दिन.
इंतज़ार वो तब भी करती,
चिंता की घड़ियाँ गिन-गिन.
लाख़ कहा उसको ये हमने,
फिक्र हमारी क्यूँ करती हो?
खुद का भी तुम,कभी तो सोचो
मुफ़्त में ही आँखें भरती हो!
सोचो, मेरी 'माँ' के आँसू
उन लम्हों में भी, वो रो दी.
'माँ' है तो दुनिया है सबकी
'ज़िंदगी' वरना 'व्यर्थ' में खो दी.
प्रीति 'अज्ञात'
... एक अच्छी प्रस्तुति ....सुन्दर रचना ../माँ पर कुछ भी लिखो कम ही लगता है ..फिर भी आपने बहुत सुन्दर लिखा है ...बस इसे पढ़ कर इतना ही कहूँगा की दुनिया की हर माँ को शत-शत नमन ....'माँ ' शब्द अपने आप में महान है
ReplyDeleteसच कहा आपने ! बहुत-बहुत आभार आपका !
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