मैंने देखे हैं -
सपने बुनते हुए लोग
और ढहते हुए ख़्वाब
जगमगाती हुई एक रात
और सिसकते जज़्बात
मचलते हुए अरमान
और टूटता आसमान !
महसूस की है -
मुस्कुराहट में छिपी उदासी
और अंदर की बदहवासी
महफ़िल में बसी खामोशी
और हर इक कोना वीरान
हालात से चूर-चूर
और जीने को मजबूर !
और जाना इस राज़ को -
कि मुरझाए से कुछ चेहरे
हर पल बदलते रिश्ते
टूटते हुए घरौंदे
उदासी की छाई बदली
भीगे हुए-से पल
ही तो प्रतिबिंब हैं
उस 'शै' का
जिसे 'ज़िंदगी' कहते हैं....!
प्रीति "अज्ञात'
सपने बुनते हुए लोग
और ढहते हुए ख़्वाब
जगमगाती हुई एक रात
और सिसकते जज़्बात
मचलते हुए अरमान
और टूटता आसमान !
महसूस की है -
मुस्कुराहट में छिपी उदासी
और अंदर की बदहवासी
महफ़िल में बसी खामोशी
और हर इक कोना वीरान
हालात से चूर-चूर
और जीने को मजबूर !
और जाना इस राज़ को -
कि मुरझाए से कुछ चेहरे
हर पल बदलते रिश्ते
टूटते हुए घरौंदे
उदासी की छाई बदली
भीगे हुए-से पल
ही तो प्रतिबिंब हैं
उस 'शै' का
जिसे 'ज़िंदगी' कहते हैं....!
प्रीति "अज्ञात'