Monday, February 10, 2014

जान ले तू....

छुप रहा हैं क्यूँ अभी से, बादलों के पार तू
न हो रज़ा तो ढीठ बनके,कर दे अब इन्कार तू

दर्द का बहता समंदर, कश्ती न पतवार है
छोड़ दे लहरों में खुद को, कर जाएगा पार तू

पत्थरों के आगे झुक,हासिल कहाँ अब रोटियाँ
छीन ले उठकर इन्हें या,श्रद्धा का कर व्यापार तू

सीख ले सब दुनियादारी रस्मे-उल्फ़त कुछ नहीं
जीते-जी मर जाएगा, जो कर गया ऐतबार तू

दूर वो बूढ़ी सी आँखें, नम हो दुआएँ भेजतीं
ग़म को छुपा भीतर कहीं, लग जा गले से यार तू

लड़खड़ाते ही सही पर कुछ कदम अब शेष हैं
कोई तुझ बिन  मरेगा, देख बन के मज़ार तू

अजनबी चेहरों की महफ़िल में खुशी को ढूंढता
हादसा ऐसा हुआ कुछ, ख़ुद बन गया बाज़ार तू

तेरे ग़म पे हँसने वाले साथ में न रोएंगे
इतना ही काफ़ी समझ ले,रिश्तों का कारोबार तू

प्रीति 'अज्ञात'

2 comments:

  1. सुंदर रचना और सुंदर शीर्षक :-)

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  2. आभार आपका, पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए !

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