स्त्री और पुरुष
तराजू के दो पलड़े
लगते संतुलन बनाते
पर दूर हैं, खड़े
स्त्री के लिए पुरुष
उसकी ज़िंदगी
पुरुष से होती नहीं
ऐसी कोई बंदगी
स्त्री के लिए प्रेम
उम्र-भर का वादा
पुरुष के लिए मात्र
प्राप्य का इरादा
स्त्री के लिए साथ
एक सुंदर अहसास
पुरुष के लिए घुटन
जब भी वो पास
स्त्री बोलती रहती है
कि पुरुष कुछ कहे
वो कुछ नहीं बोलता
ताकि स्त्री चुप ही रहे
स्त्री के लिए मौन
उसका अवसाद
पुरुष के लिए
टाला गया वाद-विवाद
स्त्री के लिए विवाह
रिश्ता जनम-जनम का
पुरुष के लिए प्रतिफल
उसके बुरे करम का
स्त्री की चाहत
छोटे-छोटे से पल
पुरुष की नज़रों में
व्यर्थ का कोलाहल
स्त्री बचपन से
सपनों की आदी
पुरुष जीता समाज बन
हरदम यथार्थवादी
प्रीति 'अज्ञात'
तराजू के दो पलड़े
लगते संतुलन बनाते
पर दूर हैं, खड़े
स्त्री के लिए पुरुष
उसकी ज़िंदगी
पुरुष से होती नहीं
ऐसी कोई बंदगी
स्त्री के लिए प्रेम
उम्र-भर का वादा
पुरुष के लिए मात्र
प्राप्य का इरादा
स्त्री के लिए साथ
एक सुंदर अहसास
पुरुष के लिए घुटन
जब भी वो पास
स्त्री बोलती रहती है
कि पुरुष कुछ कहे
वो कुछ नहीं बोलता
ताकि स्त्री चुप ही रहे
स्त्री के लिए मौन
उसका अवसाद
पुरुष के लिए
टाला गया वाद-विवाद
स्त्री के लिए विवाह
रिश्ता जनम-जनम का
पुरुष के लिए प्रतिफल
उसके बुरे करम का
स्त्री की चाहत
छोटे-छोटे से पल
पुरुष की नज़रों में
व्यर्थ का कोलाहल
स्त्री बचपन से
सपनों की आदी
पुरुष जीता समाज बन
हरदम यथार्थवादी
प्रीति 'अज्ञात'
शुक्रिया, राजीव जी !
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति है ! बधाई !!
ReplyDeleteधन्यवाद , सतीश जी !
Deleteसार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteफेसबुक का धन्यवाद आपके ब्लॉग का रास्ता दिखने के लिये।
सादर
शुक्रिया, यशवंत जी !
DeleteHeart touching
ReplyDeleteशुक्रिया !
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