Wednesday, July 10, 2013

Main Paagal, Mera Manwa Paagal

ये मन बड़ा अज़ीब सा होता है. जब कोई दुख आए, तो हमेशा यही सोचा करता है,कि हाय ! मेरी तो किस्मत ही खराब है. सिर्फ़ मेरे ही साथ ऐसा क्यूँ होता है. बस यही दिन और देखना बाकी रह गया था, मुझे आज ही उठा ले, इस दुनिया से ! और भी ना जाने, क्या-क्या ऊलजलूल सी बातें ! मैं तो भगवान के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगाने से भी नहीं झिझकती. मान ही लेती हूँ, कि वो हैं ही नहीं ! लेकिन उससे भी ज़्यादा आश्चर्य की बात ये है कि, जब हमारा कोई अपना बेहद परेशान, दुखित, व्यथित होता है. उस वक़्त हम खुद ही ये दुआ कर रहे होते हैं, कि उसकी परेशानी हमें मिल जाए, क्योंकि हम तो कुछ भी झेल सकते हैं. इतने मजबूत हृदय वाले हैं, काश, वो दर्द हम बाँट पाते ,पर उसके चेहरे की उदासी देखी नहीं जाती ! मतलब यही हुआ ना, कि हम सभी बड़े-से-बड़े तूफ़ानों से भी टकरा जाने की हिम्मत रखते हैं, गर हमारे साथ कोई हो और उसे भी इस बात पर इतना ही यकीन हो. दुनिया के किसी भी कोने में , कहीं भी कुछ भी ग़लत हो, उसपे सबसे पहले बैठ के मैं रोया करती थी, ये उदासी बेमतलब की तो कतई नहीं थी. अभी भी हुआ करती है. पर जो हमारे बस के बाहर है, उस पर रोने से क्या फायदा ?? बेहतर यही है, हम एकजुट होकर उससे लड़ने के उपाय तलाशें. बस यही सोचकर, आज से मैने भी बेवक़्त की उदासी को उछालकर बाहर फेंक दिया है. सूबक रही है, वो खुद एक कोने में खड़ी, मातम मना रही है अपने अकेलेपन का ! मालूम हो गया अब उसे भी, कि पास आई तो धज्जियाँ बिखेर दूँगी उसकी ! और तुम तक तो पहुँचने ही नहीं दूँगी उसे !!  
* उम्मीद है, मेरे अपने भी यही करेंगे !  
* तुम्हें भी धन्यवाद ! 
 
एक गीत की हत्या की है, अभी-अभी ----- 
"जब भी मिलती है, अजनबी लगती क्यूँ है ! 
ओये, ज़िंदगी !! तू इतनी ओवर-एक्टिंग करती क्यूँ है !" 
 

प्रीति 'अज्ञात' 

No comments:

Post a Comment