इंतज़ार तुम्हारा 
कि अब इल्म ही ना रहा तुम्हें,  
इस बात का
इस बात का
और ना शेष है 
'एहसास' उस अटूट, सुनहरे से 
अपने बेतकल्लुफ प्यार का ! 
कि किस क़दर टूटकर चाहा था, 
मैनें तुम्हें 
सारी दुनिया को दरकिनार, अपने 
साथ ले आया था,  
मैं ही तो तुम्हें ! 
फिर क्या हुआ ?? 
जो आज याद करता हूँ 
उन गुज़रे पलों को 
जब तुम्हारे आगमन से पहले ही, 
तुम्हारी हँसी,  
मुझ तक पहुँच जाया करती थी ! 
तू भी तो, पंखुरी बन, मेरी बाहों में 
कैसी बेधड़क, इठलाया करती थी !  
वो, खूबसूरत केशु तेरे, 
उनकी खुशबू,  
अब तलक भूल नहीं पाया हूँ 
ए-हमसफर, मैं इस दुनिया में  
सिर्फ़ तेरे लिए ही तो आया हूँ ! 
पर ना जाने कैसे 
अब मैं, तुझको वो पहले सा  
अज़ीज़ ही ना रहा 
मेरे कर्तव्यों के सिवाय 
प्यार वो तेरा पहले सा 
उस क़दर मुझ पर बे-इंतेहाँ 
हावी  होता क्यूँ ना रहा ! 
टूट गया हूँ, मैं 
बेहद गुमसुम, लाचार सा 
अपनी ही दुनिया में 
खोया हुआ, असहाय सा 
असमंज़स में ज़रूर हूँ 
पर फिर भी 
'इंतज़ार' है, मुझे तेरा ! 
तभी तो 
उम्मीद की हल्की, 
उस किरण को लिए
उस किरण को लिए
आज भी 
बैठा हूँ, उसी बेंच पर ... 
जहाँ हम-तुम पहली बार 
मिले थे !! 
प्रीति 'अज्ञात' 

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