कितने वर्षों से जुड़ी हूँ
अपने इस संघर्ष से.
छू भी ना पाया, जो था चाहा
क्या हुआ, उद्देश्य से ?
खुद की ही,खुद से लड़ाई
जीत हो या हार हो.
क्या पड़ेगा, फ़र्क अब?
कोई भी कारागार हो !!
मेरे होने का क्या मतलब,
अब तलक, जाना नहीं !
नगमों का हर, लफ्ज़ साथी
कोई भी ज़ुर्माना नहीं !
आज अपने युद्ध से ही,
हो रही हूँ, मैं अलग !
ना पूछना, ऐ 'ज़िंदग़ी'अब
क्यूँ,हो रही हूँ, विलग!!
प्रीति'अज्ञात'
No comments:
Post a Comment