Tuesday, March 17, 2015

* उम्र के चार दशक *

वो खाते समय सोचती नहीं
और सोचते हुए खाती जाती है
लगाती है दिन-भर का हिसाब
बच्चों का होमवर्क, प्रोजेक्ट,
घर-बाहर के ढेरों काम
झूलती है निरंतर बजती 
दरवाजे की घंटियों 
और मन की आवाज़ों के बीच 
पड़ोसिन, कोरियर, सब्जीवाला, 
सेल्समेन, पस्ती, चंदा
कभी ज़रूरतमंद तो कभी 
मोहल्ले के शैतान बच्चे भी
गाहे-बगाहे बनवा ही देते हैं 
एक अंतहीन सूची
अनियमित क्रम की 
नियमितता को
निरंतर बनाये हुए !

मुस्काती हुई, करती है
सबका स्वागत
दो हाथों के साथ ही 
चल रहा काम 
छब्बीस जगहों पर  
टेलीफ़ोन को
गर्दन में अटकाकर
दौड़ते हुए दे आती है
प्यासे पौधों को पानी

चहकती हुई चिड़िया
और कुदकती गिलहरी में 
तलाशती है बचपन
सूंघ लेती है, चुपके से 
अपने ही बगीचे का कोई फूल
पुराने गीतों को सुनते हुए
खो जाती है कहीं
और फिर बड़बड़ाते हुए
अपने-आप  पर 
करती है साफ
गैस का चूल्हा भी

उठा लेती है, 
ज़मीन पर भिनकता 
बदबूदार मोजा
बिना नाक सिकोड़े,
खीजती नहीं....... 
सुखा देती है
आश्चर्यजनक स्थानों पर पड़ी
गीली तौलिया, बिन बोले.
अलगनी में उलझती बेलों को 
सुलझा देती है, 
बग़ैर किसी सहायक.
समेटती है, यहाँ-वहाँ बिखरे
चंद अरमानों को 
सिंक में पड़े बर्तनों के शोर के बीच.
होती है बेहद उदास
पर अपेक्षाएँ नही करती,
बेहूदा स्वप्न नही धरती
न आईने में निहारती खुद को
न कभी सजती-संवरती

डूबते हुए दिन के 
गालों की लाली को
कैमरे में क़ैद कर
महसूसती है 'रोमांस'
तितलियों की उड़ान 
उसे रोमांचित नहीं करती
वो समझ चुकी है 
जीवन की शर्तें !

दिल के मनों बोझ पर 
मुस्कुराहट का
झीना आवरण ओढ़ाकर 
देती है, प्रमाणपत्र
अपने जीवित होने का
हँसती है, हर बेतुकी बात पर
ठहाका लगाकर 
कि हारी नहीं अभी, खुद से !

थका हुआ तन-मन
और शरीर में बिगड़ता
हारमोनों का संतुलन
न जाने कौन
ज़िम्मेवार है किसका
कंधे उचकाकर, चुपचाप
गटक लेती है,
एक-एक टेबलेट
सुबहो-शा

ख़त्म हो जाती है, ऐसे ही 

जीवन की हर साँझ
अब इन अधकच्ची नींदों में
इंतज़ार की सुबह नहीं होती
और अंधेरा खुलने के ठीक पहले
यकायक ही
शुरू हो जाता है
एक और लापरवाह दिन
उम्र के चार दशक
पार करती औरत का !
- प्रीति 'अज्ञात'
Pic : Google
From Paintings by Dr. S. K. Mandal

http://fineartamerica.com/featured/the-waiting-lady-dr-sk-mandal.html

4 comments:

  1. वाह ! बहुत ही सुन्दर ! एक आम अधेड़ गृहणी के मन और उसकी दिनचर्या का क्या खूब जीवंत चित्रण किया है ! अनुपम भावाभिव्यक्ति ! बधाई स्वीकार करें !

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  2. मार्मिक चित्रण ... आम घरेलू स्त्री के जीवन चक्र को बाखूबी लिखा है ... बहुत भावपूर्ण ...

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  3. सुंदर भावाभिव्यक्ति

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  4. सरल शब्दों में सच्चाई बयां कर दी है आपने।

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