यादों की मटमैली चादर
समेटकर रख दी
उसी मखमली अलबम तले
पर न जाने इसे देख
आँख क्यूँ भर आती है
ज़िक्र हुआ तुम्हारा
जब भी कहीं
इक और उम्मीद पनपकर
पलकों से, खुद-ब-खुद
झर जाती है
अंत समय में मौन हो
ओढ़ा देना मुझे यही
मजबूर चादर
कि तुम तो तब भी
कुछ न कह पाओगे
मैं झाँककर देखूँगी
आसमाँ से, मायूसी में
जानती हूँ....
चुप ही रह जाओगे
अब न रहने दूँगी
कुछ भी मेरा यहाँ
अनुबंध कोई, कब
हुआ था ही कहाँ
हाँ, खुश रहो कि
चली जाऊंगी
देखना तुम क्षितिज को
हाथ थामे, नये ख्वाबों का
और फिर बेदर्दी से
मिटा देना, हर इक नाम मेरा
जो 'मिलना तय किया था'
मैंनें ही जबरन कभी
उसे निभाने अब वापिस,
हरगिज़ नहीं आऊँगी.
- प्रीति 'अज्ञात'
समेटकर रख दी
उसी मखमली अलबम तले
पर न जाने इसे देख
आँख क्यूँ भर आती है
ज़िक्र हुआ तुम्हारा
जब भी कहीं
इक और उम्मीद पनपकर
पलकों से, खुद-ब-खुद
झर जाती है
अंत समय में मौन हो
ओढ़ा देना मुझे यही
मजबूर चादर
कि तुम तो तब भी
कुछ न कह पाओगे
मैं झाँककर देखूँगी
आसमाँ से, मायूसी में
जानती हूँ....
चुप ही रह जाओगे
अब न रहने दूँगी
कुछ भी मेरा यहाँ
अनुबंध कोई, कब
हुआ था ही कहाँ
हाँ, खुश रहो कि
चली जाऊंगी
देखना तुम क्षितिज को
हाथ थामे, नये ख्वाबों का
और फिर बेदर्दी से
मिटा देना, हर इक नाम मेरा
जो 'मिलना तय किया था'
मैंनें ही जबरन कभी
उसे निभाने अब वापिस,
हरगिज़ नहीं आऊँगी.
- प्रीति 'अज्ञात'
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