Sunday, October 19, 2014

तेरे लिए

कुछ शब्द बिखर रहे थे
हवाओं में आहिस्ता-से जैसे
हर श्वांस के साथ 
उतरते गये रूह में धीरे-धीरे,
एक आवाज़ बसती गई
हृदय में, धड़कन की तरह
चेहरे पर खिलखिलाती रही 
उन आँखों की रोशनी.
वो जो, एहसास-सा ख़्वाबों में
महकता था अक़्सर
न जाने ये 'तुम' थे
या मेरी दुआ का असर,
सूखे मन की भीगी माटी
देती गई, सौंधी-सी खुश्बू
जानती हूँ, वो मेरा होकर भी
मेरा होगा, नहीं कभी.
एक मौज़ूदगी का एहसास
एक हँसी मेरे लिए
न जाने ये 'प्रेम' है
या कुछ और, पर
काफ़ी है ये सामान 'ज़िंदगी'
जीना जो है मुझे, 
बस तेरे लिए ! 
- प्रीति 'अज्ञात'

4 comments:


  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार- 19/10/2014 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 36
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

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  2. अच्छी रचना !
    मेरे ब्लॉग कि नयी पोस्ट पढ़े!

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  3. .....बहुत ही सुन्दर बहुत ही सुकून भरी पंक्तियाँ..!!

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