अधूरी सी वो 'ज़िंदग़ी'........
नन्हा सा दिल कितने सपने संजोता है. फिल्मों का असर है या ख़ुद के ही दिमाग़ की उपज़, पर सभी ने अपने सपनों के राजकुमार की तस्वीर ज़रूर बनाई होती है. उसने भी बनाई थी ! सोचती थी, कि एक दिन कोई शहज़ादा, आँखों में आँखें डालकर गुलाब का फूल पेश करेगा और वो इठलाते, शरमाते हुए उसे क़बूल कर लेगी ! ना गुलाब मिला ना शहज़ादा, हाँ सपनों का आना जारी रहा. इक अजनबी को लेकर बुने हुए सारे ख़्वाब किश्तो में चकनाचूर होते रहे ! दर्द बढ़ता गया, लहू रिसता रहा, रिश्ता घिसटता गया.
'प्यार' और 'दर्द' दो ऐसे एहसास हैं, कि जब ज़रूरत से ज़्यादा हों तो अभिव्यक्ति के लिए शब्दों के मोहताज़ नही होते. आँखें ही सब कुछ बयान कर देती हैं. किसी के दर्द को सुन लेना एक बात है और महसूस कर पाना दूसरी. मैं उन कम्बख़्त दूसरे लोगों में से हूँ...जो महसूस भी कर लिया करते हैं ! उसकी लाचारी पर अफ़सोस भी जाहिर किया और तक़लीफ़ को दूर करने की नाकाम कोशिश भी !
आगे का हाल इस कविता के माध्यम से........
अधूरी सी कुछ ख्वाहिशें
क्यूँ बनी ऐसी ये दुनिया
खारिज़ जहाँ फरमाईशे !
अधूरी सी शरारतें वो
अधूरी ही किल्कारियाँ
प्रसुप्त सी धरा तले
दबती रहीं चिंगारियाँ !
अधूरे हैं रिश्ते यहाँ पर
हैं बहुत मजबूरियाँ
चल रहे हैं साथ फिर भी
बढ़ती जाएँ दूरियाँ !
अधूरी सी उम्मीद थी
अधूरी ही वो आस थी
बिखरी हुई साँसों को लेकिन
जाने किस की तलाश थी !
अधूरी वो नाज़ुक सी टहनी
दरख़्त से जब जुदा हुई
हालात से अवाक थी वो
पर लफ्ज़ इक भी कहा नहीं !
दर्द के दरिया में इक दिन
एक मोती था गिरा
हताश, वो तलाशती अब
वो भी उसको ना मिला !
शायद अधूरी थी वो कोशिश
या अधूरा कोई वादा
रेत सा अक़सर ही ढहता
जो भी दिल करता इरादा !
कहाँ है ये, ख़ुदा..कहो ना
करें क्यूँ उसकी बंदगी
गुजर गई जहाँ से कल ही
'अधूरी' सी वो 'ज़िंदगी' !!!
प्रीति'अज्ञात'
very emotional di.
ReplyDeleteThanx , Nitin...this is very close to my heart !!
ReplyDelete"हालात से अवाक थी वो
ReplyDeleteपर लफ्ज़ इक भी कहा नहीं..."
सँवेदनशील...
hmmm..Shukriya, Hemant :)
ReplyDelete