दिल्ली की सर्दी.....
बहुत ही खूबसूरत सुबह है. ठंडी हवा भी बह रही है. आस-पड़ोस के लोगों को जब सर्दी-सर्दी कहते सुनती हूँ, तो बड़ा अज़ीब सा लगता है. अरे, ये तो खुशनुमा मौसम है..मज़े ले लो इसके ! वरना बाकी दस महीने तो गर्मी ही नाक में दम कर देती है यहाँ ! यह काफ़ी गर्म जगह है, सबको इसकी इतनी आदत पड़ गई है कि थोड़ी सी ठंडक भी किसी से बरदाश्त नहीं होती. अभी कुछ ही दिन पहले अपने एक प्रिय मित्र से बात हुई, जो कि अभी-अभी ही दिल्ली से वापिस आए हैं. गौर करने लायक बात ये है कि, वो भी मेरी तरह उत्तर भारत से ही हैं. जब उन्होनें वहाँ की सर्दी का ज़िक्र किया, तो मैंने तुरंत ही कहा..अरे, आपको तो आदत है इसकी. उनका जवाब कुछ यूँ था..." जिस सर्दी के साथ, खेल के बड़े हुए. सुबह-सुबह भाग के कंचे खेले, खेतों में घूमे..वही सर्दी अब डराती है. दोष सर्दी का नहीं, हम ही बदल गये हैं." बात में दम था, सच में हम ही बदल गये हैं ! अचानक से ही बचपन की कितनी यादें ताज़ा हो गईं, कुछ इस तरह ---------
वो कंपकँपाते हुए, ठिठुर के चलना
वो बिस्तर से मोजे, मफलर पहन के निकलना
वो मौका देख नहाने की गुल्ली करना
या मम्मी से भैया की चुगली करना
उसका सिर्फ़ साबुन को भिगो के आना
और कंबल में घुस के फिर मुँह को छुपाना
कितनी ही यादें ये सर्दी दे जाती है......
स्कूल से आते ही किचन में दौड़ के जाना
माँ के हाथ का बना गाजर का हलवा खाना
और सबको अपना हर एक किस्सा सुनाना
वो कोहरे को चीरते हुए सड़क पे चलना
मुँह को खोले हुए अपनी साँसों को तकना
अपनी इसी बेवकूफ़ी पे जोरों से हँसना
ये सर्दी भी हमसे क्या-क्या करवाती है.......
कैसी बेफ़िक्री से स्वेटर को उछाला किए
कैसी मस्ती से सिगड़ी का उजाला किए
तापा किया करते थे हाथ, मिलकर कभी
उस दुनिया में कितने बिंदास थे सभी
रज़ाई में दुबककर, गटकते थे, मूँगफली
तो कैसे लगे अब ये दुनिया भली..........
अब ये यादें हमें कितना सताती हैं
उफ़, वो सर्दी अब कितनी याद आती है !!!
प्रीति "अज्ञात"
बढिया लेकिन अफसोस मैँने इसे गर्मियोँ मेँ पढा है...
ReplyDeleteHaha..thanx bro :))
Delete