न सभ्यता बदली
न ही संस्कृति
लेकिन इनके मायनों में
दिखने लगा है परिवर्तन
और समाज के तो कहने ही क्या!
इसका तो इतना हुआ है विकास
कि खून से लथपथ देह देखकर भी
अब जी नहीं काँपता उतना
हत्या, आगजनी और अपराध-जगत की हर ख़बर
लगने लगी है बासी
किसी पुराने अखबार की तरह
न जाने क्या सच है और कितना
पर यह तो सिद्ध हो चुका कि
रिमोट ने आसान कर दिया जीना सबका
तभी तो इन बजबजाती साँसों के साथ भी
जारी है अनवरत ठहाकों का क्रम
निगली जा चुकी सारी संवेदनाओं के मध्य
चबा-चबाकर खाये जा रहे हैं क़बाब
अब जबकि ईश्वर भी लज्जित होता होगा
अपनी इस बदनामी पर
और लाशों के ढेर देख फफकता होगा रोजाना
तब भी गली-चौराहों में
मर्यादा के पखेरू चिथड़ों के बीच
मर्यादा पुरुषोत्तम का जाप जारी है....
- प्रीति 'अज्ञात'
--
न ही संस्कृति
लेकिन इनके मायनों में
दिखने लगा है परिवर्तन
और समाज के तो कहने ही क्या!
इसका तो इतना हुआ है विकास
कि खून से लथपथ देह देखकर भी
अब जी नहीं काँपता उतना
हत्या, आगजनी और अपराध-जगत की हर ख़बर
लगने लगी है बासी
किसी पुराने अखबार की तरह
न जाने क्या सच है और कितना
पर यह तो सिद्ध हो चुका कि
रिमोट ने आसान कर दिया जीना सबका
तभी तो इन बजबजाती साँसों के साथ भी
जारी है अनवरत ठहाकों का क्रम
निगली जा चुकी सारी संवेदनाओं के मध्य
चबा-चबाकर खाये जा रहे हैं क़बाब
अब जबकि ईश्वर भी लज्जित होता होगा
अपनी इस बदनामी पर
और लाशों के ढेर देख फफकता होगा रोजाना
तब भी गली-चौराहों में
मर्यादा के पखेरू चिथड़ों के बीच
मर्यादा पुरुषोत्तम का जाप जारी है....
- प्रीति 'अज्ञात'
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