Monday, March 11, 2019

ये दुनिया

दुनिया ये पागल सारी है
अपनों से हरदम हारी है 

छूटा शहर, गली, हर गाँव 
सफ़र अभी तक जारी है

जो आये, आकर लौट गए 
दिल उनका आभारी है 

सुख के बस ढलते किस्से हैं 
दुःख का हर पाँव भारी है  

पेड़, छाँव, छत खो बैठे 
जीवन की धूप क़रारी है

इश्क़, मुहब्बत, आशिक़, दिल 
सब मरने की तैयारी है
- © प्रीति 'अज्ञात'

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