Thursday, September 20, 2018

चले जाने के बाद

कवि के चले जाने के बाद 
शेष रह जाते हैं उसके शब्द
मन के किसी कोने को कुरेदते हुए 
चिंघाड़ती हैं भावनाएँ 
कवि की बातें, मुलाक़ातें 
और उससे जुड़े किस्से 
शब्द बन भटकते हैं इधर-उधर  
जैसे पुष्प के मुरझाने पर 
झुककर उदास हो जाता है वृन्त
जैसे उमस भर-भर मौसम 
घोंटता है बादलों का गला 
जैसे प्रिय खिलौने के टूट जाने पर 
रूठ जाता है बच्चा 
या कि बेटे के शहर चले जाने पर 
गाँव में झुँझलाती फिरती है माँ
वैसे ही हाल में होते हैं 
कुछ बचे हुए लोग 
पर जैसे थकाहारा सूरज 
साँझ ढले उतर जाता है नदी में 
एक दिन अचानक वैसे ही
चला जाता है कवि भी 
हाँ, उसके शब्द नहीं मरते कभी 
वे जीवित हो उठते हैं प्रतिदिन 
खिलती अरुणिमा की तरह 
- प्रीति 'अज्ञात'
(Image: Gavin Trafford)

16 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. सभी तुलनाएं अतुलनीय हैं.
    कवि का शरीर गायब हो जाता है लेकिन आत्मा उसके शब्दों में विराजमान रहती है तभी तो किसी कवि के चले जाने के बाद उसकी कविताएँ ज्यादा प्रसिद्धि पाती है.
    आत्मसात 

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  3. चला जाता है कवि भी
    हाँ, उसके शब्द नहीं मरते कभी
    वे जीवित हो उठते हैं प्रतिदिन
    खिलती अरुणिमा की तरह
    वाह बहुत सुंदर भावों से सजी बेहतरीन रचना

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    1. शुक्रिया, अनुराधा जी

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  4. इन्सान चला जाता है लेकिन उसके अच्छे-बुरे कर्म यहीं रह जाते हैं, जो जीवित रहते हैं
    बहुत अच्छी रचना

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  5. कवि की कविताएं कवि के मर जाने के बाद भी यहाँ जीवित रहती हैं ...
    बहुत सुन्दर...

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. धन्यवाद, अमित जी

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  8. धन्यवाद, शिवम् जी

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