इश्क़ बस देह भर ही नहीं होता जानां
ये जो एक थकान भरे दिन के ढलते-ढलते
जब उसका हाथ थाम तुम कहते हो न
सुनो, अब बैठ भी जाओ कुछ पल
कितना काम करती हो दिन भर
वही इश्क़ की पहली फुहार बन महकती है
किसी सुस्त रविवार की अलसाई सुबह की
अधखुली आँखों की इक मासूम करवट
जब वो घड़ी देख अचानक उठ बैठती है घबराकर
एन उसी वक़्त चाय का कप आगे सरकाकर तुम्हारा यूँ कहना
लो, आज मेरे हाथों की चाय पीकर देखो
ख़ुदा क़सम! इश्क़ की कहानी तभी पायदान चढ़ती है
मेहमानों के अचानक आने और उसकी हड़बड़ाहट के बीचों-बीच
तुम्हारा झटपट सलाद तैयार कर
क्रॉकरी निकाल देना भी
इश्क़िया अहसास का एक धड़कता पन्ना ही तो है
वो जब कहीं लौट जाने को उदास मन और भरी आँखों से
मुस्कान को होठों से सटाकर, चुपचाप लगी होती है पैकिंग में
उसी समय उसकी ज़रूरी चीज़ें पलंग पर रख आना
उसके कपड़ों को धूप में सुखाना या पलट आना
तौलिये को भीगने से बचाने की सोच लिए
अपनी तौलिया थमा आना
ये सारे भाव इश्क़ के अपठित गद्यांश हैं प्रिय
ट्रेन के सफ़र में हँसते हुए उसे विंडो सीट थमा देना
या कि शरारती आँखों से बैग को बीच से हटा
हौले-से उसके और क़रीब खिसक आना
ये भी इस मुए इश्क़ की ही करामात है जानां
तुम्हें क्या पता कि किसी भीड़भाड़ भरे प्लेटफॉर्म या
वाहनों से पटी सड़क पर
उसकी अंगुली को किसी बच्चे की तरह थाम लेना
कैसे सुरक्षा-कवच की तरह ढक लेता है उसे
यही तो है इश्क़ का सबसे ख़ूबसूरत अंदाज़ ए बयां
आहिस्ता से उसके माथे को चूमना
कंधे पर सर टिका बैठना
उंगलियों में उंगलियाँ फंसा कुछ भी न बोलना
या गोदी में यूँ ही सर रख लेट जाना
एक ही प्लेट में साथ भोजन खाना
उसके प्यारे पंछियों के लिए
दाना-पानी रख आना
उसके इर्दगिर्द यूँ ही गुनगुनाना
तो कभी एकटक देख बेवज़ह मुस्कुराना
ये सब और ऐसी कितनी ही ढेरों अदाएँ
इश्क़ की किताब की अनगिनत,अनकही बातें हैं
पर जब भी ऐसा कुछ करो
तो स्त्री की आँखों को जरूर पढ़ना
और देखना इश्क़ की लहर को गुजरते हुए
खिलखिलाती, मचलती अदाओं को ठुनकते हुए
यूँ तुम तो जानते ही हो, पर फिर भी
कहा है दोबारा तुमसे अभी
इश्क़ बस देह भर ही नहीं होता जानां!
है न! 😍
- प्रीति 'अज्ञात'
ये जो एक थकान भरे दिन के ढलते-ढलते
जब उसका हाथ थाम तुम कहते हो न
सुनो, अब बैठ भी जाओ कुछ पल
कितना काम करती हो दिन भर
वही इश्क़ की पहली फुहार बन महकती है
किसी सुस्त रविवार की अलसाई सुबह की
अधखुली आँखों की इक मासूम करवट
जब वो घड़ी देख अचानक उठ बैठती है घबराकर
एन उसी वक़्त चाय का कप आगे सरकाकर तुम्हारा यूँ कहना
लो, आज मेरे हाथों की चाय पीकर देखो
ख़ुदा क़सम! इश्क़ की कहानी तभी पायदान चढ़ती है
मेहमानों के अचानक आने और उसकी हड़बड़ाहट के बीचों-बीच
तुम्हारा झटपट सलाद तैयार कर
क्रॉकरी निकाल देना भी
इश्क़िया अहसास का एक धड़कता पन्ना ही तो है
वो जब कहीं लौट जाने को उदास मन और भरी आँखों से
मुस्कान को होठों से सटाकर, चुपचाप लगी होती है पैकिंग में
उसी समय उसकी ज़रूरी चीज़ें पलंग पर रख आना
उसके कपड़ों को धूप में सुखाना या पलट आना
तौलिये को भीगने से बचाने की सोच लिए
अपनी तौलिया थमा आना
ये सारे भाव इश्क़ के अपठित गद्यांश हैं प्रिय
ट्रेन के सफ़र में हँसते हुए उसे विंडो सीट थमा देना
या कि शरारती आँखों से बैग को बीच से हटा
हौले-से उसके और क़रीब खिसक आना
ये भी इस मुए इश्क़ की ही करामात है जानां
तुम्हें क्या पता कि किसी भीड़भाड़ भरे प्लेटफॉर्म या
वाहनों से पटी सड़क पर
उसकी अंगुली को किसी बच्चे की तरह थाम लेना
कैसे सुरक्षा-कवच की तरह ढक लेता है उसे
यही तो है इश्क़ का सबसे ख़ूबसूरत अंदाज़ ए बयां
आहिस्ता से उसके माथे को चूमना
कंधे पर सर टिका बैठना
उंगलियों में उंगलियाँ फंसा कुछ भी न बोलना
या गोदी में यूँ ही सर रख लेट जाना
एक ही प्लेट में साथ भोजन खाना
उसके प्यारे पंछियों के लिए
दाना-पानी रख आना
उसके इर्दगिर्द यूँ ही गुनगुनाना
तो कभी एकटक देख बेवज़ह मुस्कुराना
ये सब और ऐसी कितनी ही ढेरों अदाएँ
इश्क़ की किताब की अनगिनत,अनकही बातें हैं
पर जब भी ऐसा कुछ करो
तो स्त्री की आँखों को जरूर पढ़ना
और देखना इश्क़ की लहर को गुजरते हुए
खिलखिलाती, मचलती अदाओं को ठुनकते हुए
यूँ तुम तो जानते ही हो, पर फिर भी
कहा है दोबारा तुमसे अभी
इश्क़ बस देह भर ही नहीं होता जानां!
है न! 😍
- प्रीति 'अज्ञात'
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