Friday, December 29, 2017

उदासी का रंग

उदासी भी कभी-कभी 
बड़े अपनेपन से
करती है गलबहियाँ 
भरते है रंग इसमें  
सूखे हुए फूल 
पीले पड़े पत्ते 
कमजोर, शुष्क,
बेजान टहनियाँ 
समंदर में डूबती-उतराती 
किनारों से टक्कर खाती  
निराश लौटती लहरें 
वहीं कहीं पार्श्व से बजती 
जगजीत की जादुई आवाज 
'कोई ये कैसे बताए...!'
और ठीक तभी ही
समुंदर में स्वयं ही 
डूब जाने को तैयार
 थका-हारा लाल सूरज
सब संदेशे हैं 
नारंगी-बैंगनी और फिर 
यकायक स्याह होते आसमान के 
कि उदासी भी एक रंग है 
ओढ़ा हुआ-सा 
- प्रीति 'अज्ञात'

2 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ख़ुशी की कविता या कुछ और?“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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