उस पल जब होगा आगमन प्रलय का
और विलीन हो जाएगी ये दुनिया
तब भी शेष रह जाएगा
कहीं कोई कवि
ढूंढता हुआ
अपनी तमाम प्रेम कविताओं में
जीवन की ग़ुलाबी रंगत
बदहवास हो तलाशेगा
उजाड़ हुई बगिया में
मोगरे की खोई सुगंध
निष्प्राण वृक्षों के क्षत-विक्षत घोंसलों में
बेसुध पड़े पक्षियों का कलरव
टहनियों में अटकी
रंग-बिरंगी तितलियों की लुप्त चंचलता
वह उस दिन विकल हो
निर्जन, सुनसान सड़कों पर
हाथ में थामे जलती मशाल
नंगे पैर चीखता हुआ दौड़ेगा
ढूंढेगा उसी समाज को
जिसके विरुद्ध लिखता रहा उम्र भर
अपनी ही आँखों के समक्ष देखेगा
संभावनाओं का खंडित अम्बर
भयाक्रांत चेहरे से उठाएगा
उस रोज का अख़बार
जिसका प्रत्येक पृष्ठ
अंततः रीता ही पाएगा
श्रांत ह्रदय से टुकुर -टुकुर निहारेगा
सूरज की डूबती छटा
और फिर वहीं कहीं
अभिलाषा की माटी में रोप देगा
जीवन की नई परिभाषा
कर लेगा मृत्यु-वरण
उसी चिर-परिचित आह के साथ
लेकिन जो जीवित रहा तब भी
तो अबकी बार
चाँद की ओर पीठ करके बैठेगा
- © प्रीति 'अज्ञात' 2017
और विलीन हो जाएगी ये दुनिया
तब भी शेष रह जाएगा
कहीं कोई कवि
ढूंढता हुआ
अपनी तमाम प्रेम कविताओं में
जीवन की ग़ुलाबी रंगत
बदहवास हो तलाशेगा
उजाड़ हुई बगिया में
मोगरे की खोई सुगंध
निष्प्राण वृक्षों के क्षत-विक्षत घोंसलों में
बेसुध पड़े पक्षियों का कलरव
टहनियों में अटकी
रंग-बिरंगी तितलियों की लुप्त चंचलता
वह उस दिन विकल हो
निर्जन, सुनसान सड़कों पर
हाथ में थामे जलती मशाल
नंगे पैर चीखता हुआ दौड़ेगा
ढूंढेगा उसी समाज को
जिसके विरुद्ध लिखता रहा उम्र भर
अपनी ही आँखों के समक्ष देखेगा
संभावनाओं का खंडित अम्बर
भयाक्रांत चेहरे से उठाएगा
उस रोज का अख़बार
जिसका प्रत्येक पृष्ठ
अंततः रीता ही पाएगा
श्रांत ह्रदय से टुकुर -टुकुर निहारेगा
सूरज की डूबती छटा
और फिर वहीं कहीं
अभिलाषा की माटी में रोप देगा
जीवन की नई परिभाषा
कर लेगा मृत्यु-वरण
उसी चिर-परिचित आह के साथ
लेकिन जो जीवित रहा तब भी
तो अबकी बार
चाँद की ओर पीठ करके बैठेगा
- © प्रीति 'अज्ञात' 2017
अति सुंदर रचना।🙏
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन कविता गूढ़ मायनों के साथ दी
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