'मौत' कितनी सस्ती !
ये जमीन तेरी
और ये मेरी
पर हम दोनों रहेंगे , कहीं और
हाँ, अपने-अपने घरों में
बैठकर बनानी होगी योजना
एक-दूसरे की मिल्क़ियत पर
कब्ज़ा करने की !
'गहन सोच' का विषय !
कौन किस पर कब
और कैसे करेगा प्रहार
लाने होंगे, गोले-बारूद, बम
सभी अत्याधुनिक हथियार
मैं जागूँगा कई रातें
तुझे उड़ाने के लिए
पर मुझे भी रहना होगा होशियार !
उनके अपने क़ायदे-क़ानून
इनकी अपनी शर्तें
इन्हें उनका तरीका नामंज़ूर
उन्हें इनसे ऐतराज़
चला रहे अंधाधुंध गोलियाँ
वहशी, दरिंदे, इंसानों के भेस में
क्या जीतना है ?
किसका सच ?
किसके लिए ?
फायदा किसे ?
नुकसान किसका ?
सरकारें परेशान, लोग हैरान
अचानक बढ़ा दी गई
सीमा पर चौकसी
'बड़े' लोगों की सुरक्षा में
हुई और बढ़ोतरी
सब निश्चिन्त, सुरक्षित
अपने प्रायोजित तंत्रों के खोल में !
और दूर कहीं से आतीं
ह्रदय-विदारक चीखें
सुना तुमनें आर्तनाद ?
इंसानी जद्दोज़हद से अनजान,
निर्दोष, मासूम बचपन
अभी ज़ख़्मी हुआ
गिड़गिड़ाता रहा बिलखकर
और फिर निढाल हो ,
सो गया
चुनिंदा, बेबस,लाशों की शक़्ल में !
* 'मौत' तुम कितनी सस्ती हो चुकी हो !
लगता है अब तुम भी बिक चुकी हो !
- प्रीति 'अज्ञात'
ये जमीन तेरी
और ये मेरी
पर हम दोनों रहेंगे , कहीं और
हाँ, अपने-अपने घरों में
बैठकर बनानी होगी योजना
एक-दूसरे की मिल्क़ियत पर
कब्ज़ा करने की !
'गहन सोच' का विषय !
कौन किस पर कब
और कैसे करेगा प्रहार
लाने होंगे, गोले-बारूद, बम
सभी अत्याधुनिक हथियार
मैं जागूँगा कई रातें
तुझे उड़ाने के लिए
पर मुझे भी रहना होगा होशियार !
उनके अपने क़ायदे-क़ानून
इनकी अपनी शर्तें
इन्हें उनका तरीका नामंज़ूर
उन्हें इनसे ऐतराज़
चला रहे अंधाधुंध गोलियाँ
वहशी, दरिंदे, इंसानों के भेस में
क्या जीतना है ?
किसका सच ?
किसके लिए ?
फायदा किसे ?
नुकसान किसका ?
सरकारें परेशान, लोग हैरान
अचानक बढ़ा दी गई
सीमा पर चौकसी
'बड़े' लोगों की सुरक्षा में
हुई और बढ़ोतरी
सब निश्चिन्त, सुरक्षित
अपने प्रायोजित तंत्रों के खोल में !
और दूर कहीं से आतीं
ह्रदय-विदारक चीखें
सुना तुमनें आर्तनाद ?
इंसानी जद्दोज़हद से अनजान,
निर्दोष, मासूम बचपन
अभी ज़ख़्मी हुआ
गिड़गिड़ाता रहा बिलखकर
और फिर निढाल हो ,
सो गया
चुनिंदा, बेबस,लाशों की शक़्ल में !
* 'मौत' तुम कितनी सस्ती हो चुकी हो !
लगता है अब तुम भी बिक चुकी हो !
- प्रीति 'अज्ञात'
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ReplyDeleteNafrat ka anjaam yahi hota hai na khud chain se sota hai na sone deta hai..
ReplyDeleteसच में मौत आज बहुत सस्ती हो गयी है ... ख़ास कर गरीब इंसान की ...
ReplyDeleteहर तरफ खेल खेल में जान ले लेते हैं लोग ... संवेदना मर रही है जैसे ...
भाव-प्रवण कविता पोस्ट करने के लिए धन्यवाद.। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। शुभ रात्रि।
ReplyDeleteखूबसूरत कविता जो मन को छू गई।
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